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PHOTOS: खिलखिला उठा बेगमपुरा…रविदास जयंती पर सजा संत का गांव, श्रम साधक की जन्मस्थली पर दीपोत्सव

श्रम साधक संत रविदास के सपनों का गांव बेगमपुरा सज धजकर तैयार है। मंदिर से लेकर पंडाल और पूरे मेला क्षेत्र में हर किसी की जुबान पर जो बोले सो निर्भय, सद्गुरुमहाराज की जय…के जयकारे गूंज रहे थे। संत निरंजन दास जब अपने अनुयायियों का हाल-चाल लेने मेला क्षेत्र में निकले तो क्षेत्र रविदास शक्ति अमर रहे…के जयकारों से गूंज उठा। संत रविदास की जयंती का उत्सवी माहौल सीरगोवर्धन में छाया हुआ है।  संत शिरोमणि गुरु रविदास की 646वीं जयंती की पूर्व संध्या पर शनिवार को सीर गोवर्धन में संगत और पंगत की रंगत चटख हो उठी। संत निरंजन दास ने संतों की टोली के साथ सत्संग स्थल समेत संपूर्ण मेला क्षेत्र का जायजा लिया।

श्रद्धालु जगह-जगह खड़े होकर गुरु को नमन कर रहे थे।  रविदास मंदिर में भक्तों की लंबी कतार लगी थी तो दूसरी ओर सेवादार भी मुस्तैद थे। गुरुचरणों की रज पाने के लिए भक्तों का उत्साह देखने लायक था। संत रविदास पार्क में रैदासियों ने गुरु की याद में दीपदान किया। दीपों के उजास तले जयंती पर्व का उल्लास छाया तो हर ओर जय रविदास गूंजा।

गुरु चरणों में समर्पित हजारों श्रद्धालुओं के जत्थे ने प्रतिमा के समक्ष शीश नवाया। दीयों में निशान साहब, गुरु रविदास, जय गुरुदेव तन गुरु देव…को उकेरा। माल्यार्पण और दीपदान के बाद पूरा पार्क दीपों की रोशनी से जगमग हो उठा। खुशियों से खिले स्मारक स्थल में पंजाब की छवि दिखी।

शनिवार शाम को रैदासी भक्तों की टोली नगवां स्थित संत रविदास पार्क पहुंची। श्रद्धालुओं के हुजूम से नगवां मार्ग जाम हो गया। पार्क में उत्साह चरम पर था। शाम करीब साढ़े पांच बजे से दीये जलने शुरू हुए और पीली आभा चारों तरफ पसरती चली गई। पंजाबी ढोल पर  भक्तों का जत्था जोश में नाचता रहा। ब्यूरो

सांझ ढलते ही रविदास मंदिर रोशनी से जगमग हो उठा। मानों दीपावली की सांझ हो। जिधर देखो उधर रंग-बिरंगी रोशनी, कहीं दीप तो कहीं झालरों की रोशनी से सीर की हर गली आकर्षक नजर आ रही थी। फू ल-माला की दुकानों पर श्रद्धालुओं का लंबी कतार देखने को मिली।

रविदास मंदिर से लेकर लौटूबीर तक करीब एक किलोमीटर के दायरे में संत रविदास के सपनों का नगर मानो एक कठौती में समाया हो। भक्तों के निवास कैंप के बाहर भजन कीर्तन का सिलसिला अनवरत जारी है। मिनी भारत के रूप में सजे सीरगोवर्धन में कहीं कीर्तन तो कहीं पंडवानी तो कहीं लोकगीतों के जरिये गुरु के गुणों का बखान किया जा रहा है।