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मरने के बाद परिवार ने भोज कराया तो लगेगा जुर्माना, यूपी के इस गांव ने किया मृत्युभोज का बहिष्कार, क्या है वजह?

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पुरानी मान्यताओं के आ्रधार पर किसी के मरने के बाद परिवार के लोग एक भोज का आयोजन करते हैं। इसे मृत्यु भोज कहा जाता है, जिसमें क्षेत्र के लोगों को और परिचत लोगों को खाने पर बुलाया जाता है। झांसी के उल्दन गांव में मृत्यु भोज के बहिष्कार को लेकर लोगों से हस्ताक्षर भी कराए जा रहे हैं।

 

उत्तर प्रदेश के झांसी स्थित गांव में मृत्युभोज का बहिष्कार किया गयाहाइलाइट्समृत्यु भोज करने पर लगेगा जुर्माना और होगा सामाजिक बहिष्कारउत्तर प्रदेश में झांसी के उल्दन गांव में लोगों ने लिया बड़ा फैसलातेरहवीं का भोज कराने पर परिवार पर आता था आर्थिक दबावझांसी: यूपी के झांसी जिले के बंगरा विकास खंड के उल्दन गांव में अहिरवार समाज के लोगों की आबादी लगभग चार से पांच हजार के करीब है। इस समाज के लोगों की एक पहल इस समय पूरे झांसी जिले में चर्चा का विषय बनी हुई है। समाज के लोगों ने तय किया है कि परिवार के किसी सदस्य की मौत के बाद वे मृत्यु भोज का आयोजन नहीं करेंगे। इस समाज के लोगों ने यह भी निर्णय लिया है कि जो लोग इस बात को नहीं मानेंगे और मृत्युभोज का आयोजन करेंगे, उन पर जुर्माना लगाकर सामाजिक दंड देते हुए उन्हें समाज से बहिष्कृत कर दिया जाएगा।

आखिरकार समाज ने इस तरह का निर्णय लेने का मन किन परिस्थितियों में बनाया, इस सवाल के जवाब में कालू राम कहते हैं कि हमारे गांव में कई ऐसी घटनाएं हुईं जब 20 से 35 साल के लड़के दुर्घटना में या किसी बीमारी से मर गए। इनके इलाज पर झांसी से लेकर ग्वालियर तक पूरा पैसा खर्च हो गया। परिवार के लोग टूट गए लेकिन इसके बाद भी इन पर दवाब रहता था कि समाज को तेरहवीं का भोज कराया जाए। कई लोगों को कर्ज लेना पड़ा तो कई को जमीन बेचनी पड़ी। इन सब घटनाओं को देखकर समाज ने तय किया कि अब इस प्रथा का ही त्याग कर दिया जाए। कालू राम जोर देते हुए कहते हैं कि जो तेरहवीं का भोज करेगा, उस पर दंड लगेगा और समाज से बहिष्कृत कर दिया जाएगा।
500 से अधिक परिवारों के हस्ताक्षरगांव के ही रहने वाले भगवत प्रसाद उन लोगों में शामिल हैं जिन्होंने इस प्रथा का त्याग करने के लिए मुहिम की शुरुआत की। भगवत बताते हैं कि गांव में उनकी किराना की दुकान है। एक तेरहवीं भोज के लिए लोग जितना सामान उनसे खरीद कर ले जाते थे, उस पर चार से पांच हजार रुपए की बचत हो जाती थी। इसके बावजूद वे इस प्रथा को बंद करने के समर्थक हैं। इस अभियान में अभी तक पांच सौ से ज्यादा लोगों के हस्ताक्षर कराए गए हैं। गांव में समाज के उन लोगों को भी समझाने की कोशिश हो रही है, जो अभी तक इस निर्णय से सहमत नहीं हैं। भगवत यह भी दावा करते हैं कि दूसरे समाज के लोग भी उनका समर्थन कर रहे हैं।
मुहिम को दूसरे गांव में ले जाने की कोशिशसरकारी सेवा से रिटायर्ड हुए दयाराम वर्मा बताते हैं कि उल्दन में चार मोहल्ले हैं, जिनमें उनके समाज के लोग बहुतायत में रहते हैं। सभी मोहल्लों में लोगों के साथ मीटिंग हुई है और सबने समर्थन किया है। कुछ लोग हैं, जो अभी सहमत नहीं हैं। हम उन्हें भी अपनी मुहिम से जोड़ने और समझाने की कोशिश कर रहे हैं। दूसरे गांव में जाकर लोगों को प्रेरित करेंगे और इस कुप्रथा का विरोध करने को कहेंगे। हमारे इस अभियान में बड़ी संख्या में पढ़े लिखे नौजवान भी साथ हैं। हम सबने उन परिवारों की बर्बादी देखी है, जिन्हें मजबूरी में अपनी जमीनें बेचनी पड़ी और कर्ज लेना पड़ा।
पूरे क्षेत्र में चर्चा का विषयउल्दन गांव के अहिरवार समाज के लोगों का मृत्यभोज के बहिष्कार का यह निर्णय इस समय आसपास के बड़े इलाके सहित पूरे झांसी जिले में चर्चा का विषय है। निर्णय के पक्ष और विपक्ष में लोग अपनी-अपनी राय जाहिर कर रहे हैं। इन सबके बीच जिस समूह ने इस प्रथा के बहिष्कार का ऐलान किया है, वह बेहद मजबूती के साथ अपने निर्णय के साथ है। गांव के बुजुर्ग जगदीश बाबा कहते हैं, ‘तेरहवीं के भोज के लिए जमीन बेचना पड़ता है। समाज बर्बाद हो रहा है। हमने यह सब रोक दिया है। समाज को बर्बाद नहीं होने देंगे।’
रिपोर्ट – लक्ष्मी नारायण शर्मा
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