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कौडियागंज: जहां कवि जैनेंद्र ने बुनी शब्दों की माला,मिट्टी से उपजा एशियन कुश्ती चैंपियन मालव सिंह

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कवि जैनेन्द्र
– फोटो : फाइल फोटो

विस्तार

अलीगढ़ में जलाली की कालिंदी नदी के किनारे बसा कौडियागंज कस्बा धर्म और आस्था का केंद्र है। यह वह भूमि है जहां, पद्म भूषण कवि जैनेंद्र कुमार ने कविताओं के माध्यम से शब्दों की माला बुनी, तो यहां की मिट्टी से एशियन कुश्ती चैंपियन मालव सिंह ने जन्म लिया। 

साहित्यकार की जन्मदाता भूमि

वहीं कौडियागंज की पावन भूमि ने 1960 में जैन परिवार में एक ऐसे बालक को जन्म दिया जिसका बचपन अभावों में किशोरावस्था अध्ययन में और जवानी संघर्षों में बीती। चार माह की उम्र में ही आनंदीलाल के सिर से पिता का साया उठ गया जिसके बाद इनकी मां और मामा ने इनका पालन पोषण किया। प्रारंभिक शिक्षा मेरठ जिले के कस्बा हस्तिनापुर में जैन गुरुकुल ऋषि ब्रह्मचर्याश्रम से की जहां उनको आनंदीलाल से जैनेंद्र जैन नाम दिया गया। दसवीं के बाद उन्होंने काशी जाकर आगे की शिक्षा हासिल की। देश की आजादी की लडाई में कूदकर गांधीजी के असहयोग आंदोलन में हिस्सा लिया तथा जेल भी गये। कैदखाने की चारदीवारों के बीच ही उन्हें अपने विचारों और मनोभावों को स्वतंत्र लेखन के द्वारा जानमानस तक पहुंचाने की प्रेरणा मिली। 

इसके बाद उनकी कलम की धार और विचारों की रफ्तार ने हिन्दी साहित्य में जो मुकाम हासिल किया वह आज भी कस्बे को गौरवान्वित कर रहा है। इन्होंने उपन्यासए कहानियोंए और नाट्य साहित्य में अपनी प्रतिभा को लोहा मनवाया। 1929 में हिंदुस्तानी अकादमी इलाहाबाद ने परख उपन्यास के लिएए 1952 में भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय ने कहानी प्रेम में भगवान के लिए 1953 में साहित्य अकादमी ने नाट्य साहित्य ष्पाप और प्रकाशष्के लिएए 1966 में मुक्तिबोध के लिए हस्तीमल डालमिया पुरस्कार तथा 1970 में उत्तर प्रदेश ने समय और हम के लिए जैनेन्द्र जैन को सम्मानित किया। 1971 में जैनेन्द्र के साहित्यिक योगदान के लिए भारत सरकार ने उन्हें पद्म भूषण सम्मान से विभूषित किया।

यहां जन्मे मालवा सिंह पहलवान

वहीं कौडियागंज कस्बे का अतीत भी गौरवशाली रहा है। कस्बे के ग्रीश चंद्र गर्ग तथा अखिलेश महाजन ने बताया कि यहां के एक निर्धन कश्यप परिवार में मलुआ नामक बालक ने जन्म लिया था। आर्थिक जरूरतों को पूरा करने के लिए परिवार दिल्ली जाकर बस गया। वहां मलुआ का मन पढ़ाई के बजाय बच्चों को उठाकर पटकने में रहता था। दिल्ली के हनुमान अखाड़ा की उनपर नजर पड़ी तो उन्होंने मलुआ को दांव पेच की शिक्षा देकर प्रदेश और राष्ट्रीय स्तर पर खिलाया। सफलता की सीढ़ीयां चढते हुए मलुआ से मालवा सिंह बने पहलवान ने 1962 में जकार्ता में हुई एशियन चैंपीयनशिप में 52 किलोग्राम की ग्रीको रोमन कुश्ती में देश को गोल्ड मैडल दिलाकर कौडियागंज को गौरवान्वित किया। एक समय था जब कौडियागंज कस्बा मालवा पहलवान के नाम से विख्यात था।

आस्था और भक्ति का केंद्र है

यहां स्थित ललिता माता का प्राचीन मंदिर लोगों के आस्था का केन्द्र है, जहां हर धर्म और समाज का व्यक्ति बिना किसी भेदभाव के पूजा अर्चन कर माता की जात करता है। प्रत्येक वर्ष होली के पश्चात बासौडा पूजन के साथ ही प्रत्येक मंगलवार को यहां लोगों की भीड़ माता की जात करती है। यह सिलसिला प्रत्येक मंगलवार अनवरत रूप से चलता है तथा अषाढ़ मास में जाकर रुकता है। निकटवर्ती कस्बों से लेकर दूसरे प्रांतों में जा चुके कौडियागंज के लोग भी यहां अपने बच्चों को लाकर माता के दर्शन् कराते हैं तथा उनकी चिरआयु और स्वास्थ्य की मंगल कामना करते हैं। किवदंति है कि सैंकडों वर्ष कालिन्दी नदी के किनारे बने शिव मंदिर के पास एक दैत्य रहता था जोकि बच्चों का भक्षण करता था। उसने बीस किमी के दायरे को बच्चों से रहित कर दिया था। 

हर ओर त्राहि त्राहि मची हुई थी उसी दौरान एक बालिक त्रिशूल लेकर गुफा पर पहुंची जिसने दैत्य को ललकारा तथा उसे गुफा से दूर पश्चिम दिशा की ओर लेकर गई जहां उसका वध किया। जिस स्थान पर दैत्य का संहार हुआ उसी स्थान पर उस बालिका ;ललिता माताद्ध के नाम से मंदिर स्थापित हुआ जहां कस्बे समेत दूर दराज के लोग भी अपने बच्चों की मंगल कामना के लिए पहुंचते हैं। इसके अलावा कस्बे के मुख्य बाजार में स्थित दाऊजी मंदिर पर प्रत्येक वर्ष गणेश चतुर्थी के साथ ही देवछट मेले का आयोजन शुरु हो जाता है जोकि एक सप्ताह तक चलता है।

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