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मुख्तार अंसारी को पहले से थी ‘पीजे’ पर हमला होने की खबर, 7 साल पहले हुए हत्‍याकांड से पर्दा उठाएगी लखनऊ पुलिस

लखनऊ : राजधानी में करीब सात साल पहले मुन्ना बजरंगी के साले पुष्पजीत सिंह ‘पीजे’ और उनके साथी संजय मिश्रा पर हमला होने की जानकारी जेल में बंद मुख्तार अंसारी को पहले से ही थी। उसने अपने दो गुर्गों को उसे आगाह करने के लिए उसके घर भी भेजा था, लेकिन उनके पहुंचने से पहले ही विकासनगर सेक्टर-3 में गोलियों की तड़तड़ाहट गूंज उठी थीं। सीजेएम कोर्ट में दिए गए अपने बयान में गवाह ने इसका खुलासा भी किया था, लेकिन पुलिस ऐसे कई तथ्यों को नजरअंदाज करते हुए सिर्फ लोकेशन पर पांव रखकर आगे बढ़ गई और तीनों आरोपितों को क्लीन चिट देते हुए केस में फाइनल रिपोर्ट लगा दी थी। जबकि इस हाईप्रोफाइल मर्डर केस में पुलिस को शुरू से ही एमएलसी चुनाव को लेकर उपजी प्रतिद्वंद्विता, एक हाईप्रोफाइल मर्डर केस की पैरवी से पहले दी गई धमकी और पूर्वांचल के किसी गिरोह की संलिप्तता के आसार साफ नजर आ रहे थे। फिलहाल इस मर्डर केस से पर्दा उठाने की जिम्मेदारी कोर्ट ने एक बार फिर खाकी को सौंप दी है।

विकासनगर इलाके में पांच मार्च 2016 को रात करीब साढ़े दस बजे बाइक सवार बदमाशों ने कार से घर जा रहे पुष्पजीत सिंह और उनके दोस्त संजय मिश्रा को गोलियों से छलनी कर दिया था। पुलिस ने दोनों को ट्रॉमा सेंटर पहुंचाया, जहां उनकी मौत हो गई थी। इस दोहरे हत्याकांड में विकासनगर थाने में पुष्पजीत के साले विकास ने दूसरे दिन अज्ञात बाइक सवारों के साथ ही दिवंगत विधायक कृष्णानंद राय के साले बृजेश कुमार राय, मनोज कुमार राय व आनंद राय उर्फ मुन्ना के विरुद्ध मुकदमा दर्ज कवाया था। पुलिस ने इस मामले में तीनों आरोपितों की लोकेशन ट्रेस की तो उनकी लोकेशन गाजीपुर, वाराणसी व बलिया में मिली। उसी आधार पर पुलिस ने तीनों को क्लीन चिट देते हुए 25 मई 2018 को अंतिम रिपोर्ट दाखिल कर दी थी।

‘पीजे को बता दो कि उसे खतरा है’सूत्रों के मुताबिक गाजीपुर के चौकिया निवासी गवाह नफीस अहमद ने सीजेएम कोर्ट में बयान दिया था कि मुख्तार अंसारी को वह 5 मार्च 2016 को लखनऊ छोड़ने आया था। वहां पर मुख्तार ने मुझे बुलाकर पीजे के घर जाकर उसे खतरे के प्रति आगाह करने को कहा था। वह रात करीब 9:30 बजे चंद्रिका जायसवाल के साथ बाइक से पीजे के घर जाने के लिए निकला। रात 10 बजे के आसपास पीजे के घर के पास डिवाइडर के पास पहुंचा था, तभी ब्रेकर के पास एक गाड़ी पर फायर हुआ था। आगे बढ़ते ही उसी गाड़ी पर अंधाधुंध फायरिंग होने लगी थी। एक आदमी ने वहीं से फोन मिलाया और कहा कि मनोज भैया और आनंद भैया को बता दो जैसा उन्होंने कहा था उसी तरह पिजवा को मारा। नफीस ने मनोज और आनंद के साथ ही पीजे को भी कई साल से जानने की बात कोर्ट को बताई थी। चौंकाने वाली बात ये थी कि नफीस के इस बयान को पुलिस ने विवेचना में शामिल नहीं किया।

इन तीन बिंदुओं पर नहीं हुई विवेचनापहला बिंदु-मुन्ना बजरंगी की पत्नी सीमा सिंह उस दौरान गाजीपुर से एमएलए का चुनाव लड़ने की तैयारी कर रही थीं। बहन होने के नाते पुष्पजीत उनके मददगार थे। सूत्रों की मानें तो पुष्पजीत के इस दांव से गाजीपुर का एक माफिया काफी नाराज था। दरअसल वह एमएलसी चुनाव के लिए खुद मैदान में उतरने की तैयारी कर रहा था। इसलिए दोहरे हत्याकांड में माफिया की भूमिका को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। पुलिस ने इस बिंदु पर कोई जांच नहीं की।

दूसरा बिंदु-गाजीपुर के पूर्व विधायक कृष्णानंद राय हत्याकांड में मुन्ना बजरंगी की ओर से दिल्ली की तीस हजारी कोर्ट में पुष्पजीत ही पैरवी कर रहा था। वहीं कृष्णानंद राय की ओर से उनके तीनों साले पैरवी कर रहे थे। कृष्णानंद राय हत्याकांड की सुनवाई की तारीख 16 मार्च 2016 निर्धारित थी। इससे पहले ही पांच मार्च को पुष्पजीत व उसके दोस्त की हत्या कर दी गई थी। पुलिस ने इस पहलू को भी जांच में शामिल नहीं किया।

तीसरा बिंदु-विकासनगर में पुष्पजीत सिंह व संजय की सनसनीखेज हत्या के बाद खुद तत्कालीन एसएसपी राजेश पांडे समेत कई आला अधिकारी फॅरेंसिंक टीम मौके पर पहुंची थी। पुलिस ने मौके से मिली बुलेट व उसके खोखे भी कब्जे में लिए थे। उसी बोर के असलहों का इस्तेमाल यूपी के कई घटनाओं में भी हुआ, लेकिन पुलिस ने इस बिंदु को लेकर कोई छानबीन नहीं की।

फिर से जांच करेगी पुलिसजिला जज संजय शंकर पांडेय ने मुन्ना बजरंगी के मुकदमे की पैरवी करने वाले पुष्पजीत सिंह व इनके साथी संजय मिश्रा की चर्चित हत्याकांड मामले में पुलिस की अंतिम रिपोर्ट मंजूर करने व प्रोटेस्ट अर्जी को नामंजूर करने के आदेश को गुरुवार को निरस्त कर दिया है। उन्होंने सीजेएम को आदेश दिया है कि वह प्रोटेस्ट अर्जी पर पुनः सुनवाई कर नए सिरे से समुचित आदेश पारित करें। उन्होंने यह आदेश मुन्ना बजरंगी के साले विकास श्रीवास्तव की निगरानी अर्जी पर दिया है। एक मार्च, 2019 को सीजेएम ने पुलिस की अंतिम रिपोर्ट को मंजूर करते हुए प्रोटेस्ट अर्जी को खारिज कर दिया था। निगरानी अर्जी दाखिल कर सीजेएम के इसी आदेश को चुनौती दी गई थी। अब पुलिस इस मामले की नए सिरे से विवेचना करेगी। निगरानी अर्जी पर बहस करते हुए अधिवक्ता प्रांशु अग्रवाल का कहना था कि न्यायिक विवेक का प्रयोग किए बिना प्रोटेस्ट अर्जी निरस्त की गई है। इस घटना के चश्मदीद गवाहों के बयान पर कोई ध्यान नहीं दिया गया है। विवेचक ने कई तथ्यों की अनदेखी कर अंतिम रिपोर्ट दाखिल कर दी है।