Lok Shakti

Nationalism Always Empower People

टाउनशिप योजना में 80 करोड़ रुपये का घोटाला, नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षा की रिपोर्ट में हुआ खुलासा

पूर्व मुख्यमंत्री मायावती के शासन काल में यमुना प्राधिकरण के कुछ अधिकारियों और नेताओं ने मिलकर शासन को 80 करोड़ रुपये से अधिक का आर्थिक नुकसान पहुंचा दिया। इस घोटाले को अंजाम देने के लिए प्राधिकरण के क्षेत्र में बुलंदशहर के बैलाना गांव में एक टाउनशिप बसाने की तैयारी की गई।

इसके बाद जगह-जगह पर टुकड़ों में परिचितों की जमीन खरीद ली। इसके लिए पहले 10 गांवों के लिए अधिसूचना जारी कराई गई, फिर बोर्ड बैठक में प्रस्ताव लाकर अधिसूचना को निरस्त (डी नोटिफाइड) के लिए शासन को पत्र भेज दिया गया, लेकिन इस बीच जमीन की खरीद चालू रही। इतना नहीं मुआवजा दर बुलंदशहर में 990 रुपये प्रति वर्गमीटर थी, लेकिन 1093 और 1186 रुपये वर्गमीटर की दर से मुआवजा दिया गया। इससे सरकार को घाटा हुआ।

इस घोटाले की नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) रिपोर्ट पिछले दिनों विधानसभा के पटल पर रखी गई थी। इसके बाद यमुना प्राधिकरण में दस्तावेज को लेकर रिकार्ड खंगालने शुरू कर दिए गए हैं। अब शासन की समिति कभी भी प्राधिकरण का दौरा कर सकती है।

दरअसल, वर्ष 2011 और 2012 में प्राधिकरण और कुछ नेताओं ने एक बड़ी कंपनी की मेगा सिटी टाउनशिप बसाने के लिए आवेदन कराया और चार लाख वर्गमीटर जमीन खरीदने की मांग की। इसके बाद जमीन खरीदने के लिए प्राधिकरण के अधिकारियों ने 10 गांवों की अधिसूचना कराई, लेकिन इसी बीच बोर्ड बैठक करके अधिसूचना को रद्द कराते हुए आपसी सहमति से जमीन खरीदने का प्रस्ताव बना लिया, जबकि अधिसूचना रद्द होने पर जमीन नहीं खरीदी जानी थी।

अधिकारियों ने कुछ विशेष लोगों की टुकड़ों में जमीन खरीदी जो मास्टर प्लान से बाहर थी। जमीन को एक से दूसरी तक जोड़ने के लिए अन्य किसानों से भी भूमि खरीदी गई, जबकि इस बीच टाउनशिप का प्रस्ताव निरस्त हो गया और राशि वापस मांगी गई थी। इस राशि को वापस करने के दौरान कुछ फीसदी कटौती की जानी थी। अधिकारियों ने बिना कटौती के पूरी राशि कंपनी को वापस कर दी। जब कंपनी ने अपना आवेदन वापस ले लिया तो बिना किसी प्रस्ताव के इसमें से कुछ जमीन दूसरी कंपनियों को आवंटित कर दी गई।

सीएजी ने उठाए सवाल

बुलंदशहर में जिस समय 990 रुपये प्रति वर्गमीटर की दर से मुआवजा दिया जाना था। उसी समय प्राधिकरण के अधिकारियों ने 1093 से 1186 रुपये प्रति वर्ग मीटर मुआवजा दिया गया। इस जमीन का मुआवजा दिए जाने में बरती गई अनियमिताओं के कारण प्राधिकरण को करीब सवा करोड़ रुपये का घाटा हुआ।
जब टाउनशिप का प्रस्ताव आया और पहले 10 गांवों की जमीन को अधिसूचित कराया और फिर उसे बोर्ड में ले जाकर अधिसूचना को निरस्त करा दिया तो टाउनशिप की योजना ही फ्लॉप हो गई। इसके बावजूद भी जमीन क्यों खरीदी गई।
जब टाउनशिप ने आवेदन वापस ले लिया तो दूसरे किसानों की जमीन क्यों खरीदी गई। आज तक इस जमीन पर कोई कब्जा तक नहीं लिया जा सका।

पूर्व मुख्यमंत्री मायावती के शासन काल में यमुना प्राधिकरण के कुछ अधिकारियों और नेताओं ने मिलकर शासन को 80 करोड़ रुपये से अधिक का आर्थिक नुकसान पहुंचा दिया। इस घोटाले को अंजाम देने के लिए प्राधिकरण के क्षेत्र में बुलंदशहर के बैलाना गांव में एक टाउनशिप बसाने की तैयारी की गई।

इसके बाद जगह-जगह पर टुकड़ों में परिचितों की जमीन खरीद ली। इसके लिए पहले 10 गांवों के लिए अधिसूचना जारी कराई गई, फिर बोर्ड बैठक में प्रस्ताव लाकर अधिसूचना को निरस्त (डी नोटिफाइड) के लिए शासन को पत्र भेज दिया गया, लेकिन इस बीच जमीन की खरीद चालू रही। इतना नहीं मुआवजा दर बुलंदशहर में 990 रुपये प्रति वर्गमीटर थी, लेकिन 1093 और 1186 रुपये वर्गमीटर की दर से मुआवजा दिया गया। इससे सरकार को घाटा हुआ।

इस घोटाले की नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) रिपोर्ट पिछले दिनों विधानसभा के पटल पर रखी गई थी। इसके बाद यमुना प्राधिकरण में दस्तावेज को लेकर रिकार्ड खंगालने शुरू कर दिए गए हैं। अब शासन की समिति कभी भी प्राधिकरण का दौरा कर सकती है।

दरअसल, वर्ष 2011 और 2012 में प्राधिकरण और कुछ नेताओं ने एक बड़ी कंपनी की मेगा सिटी टाउनशिप बसाने के लिए आवेदन कराया और चार लाख वर्गमीटर जमीन खरीदने की मांग की। इसके बाद जमीन खरीदने के लिए प्राधिकरण के अधिकारियों ने 10 गांवों की अधिसूचना कराई, लेकिन इसी बीच बोर्ड बैठक करके अधिसूचना को रद्द कराते हुए आपसी सहमति से जमीन खरीदने का प्रस्ताव बना लिया, जबकि अधिसूचना रद्द होने पर जमीन नहीं खरीदी जानी थी।

अधिकारियों ने कुछ विशेष लोगों की टुकड़ों में जमीन खरीदी जो मास्टर प्लान से बाहर थी। जमीन को एक से दूसरी तक जोड़ने के लिए अन्य किसानों से भी भूमि खरीदी गई, जबकि इस बीच टाउनशिप का प्रस्ताव निरस्त हो गया और राशि वापस मांगी गई थी। इस राशि को वापस करने के दौरान कुछ फीसदी कटौती की जानी थी। अधिकारियों ने बिना कटौती के पूरी राशि कंपनी को वापस कर दी। जब कंपनी ने अपना आवेदन वापस ले लिया तो बिना किसी प्रस्ताव के इसमें से कुछ जमीन दूसरी कंपनियों को आवंटित कर दी गई।