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दंगों में शामिल आरोपियों की संपत्तियों पर बुलडोजर चलेगा या नहीं, 7 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट करेगा सुनवाई

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नयी दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा कि वह मुस्लिम संगठन जमीयत उलमा-ए-हिंद और अन्य की उन याचिकाओं पर सात सितंबर को सुनवाई करेगा। इसमें दंगा मामलों के कथित आरोपियों की संपत्ति को भविष्य में नहीं ढहाने का विभिन्न राज्य सरकारों को निर्देश देने का अनुरोध किया गया है। न्यायमूर्ति बी. आर. गवई और न्यायमूर्ति पी. एस. नरसिम्हा की पीठ ने कहा कि वह मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) नेता वृंदा करात की याचिका सहित पांच याचिकाओं पर सात सितंबर को सुनवाई करेगी।

इससे पहले शीर्ष अदालत ने 13 जुलाई को विभिन्न राज्यों में हिंसक विरोध प्रदर्शनों में शामिल आरोपियों की संपत्तियों को गिराने पर कोई अंतरिम निर्देश पारित करने से इनकार कर दिया था। शीर्ष अदालत ने आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहा था कि अगर कोई अवैध निर्माण है और निगम या (नगरपालिका) परिषद कार्रवाई करने के लिए अधिकृत है तो वह अतिक्रमण-रोधी कार्रवाई पर एक सर्वव्यापी आदेश कैसे पारित कर सकती है। इस बीच, पीठ ने पक्षकारों से मामले में अपनी दलीलें पूरी करने को भी कहा था।

शीर्ष अदालत ने 16 जून को कहा था, ‘सब कुछ निष्पक्ष होना चाहिए।’ न्यायालय ने यह भी कहा था कि अधिकारियों को कानून के तहत उचित प्रक्रिया का सख्ती से पालन करना चाहिए, जबकि उत्तर प्रदेश सरकार और उसके अधिकारियों को उन याचिकाओं का जवाब देने के लिए तीन दिन का समय दिया जाना चाहिए, जिसमें आरोप लगाया गया था कि पिछले हफ्ते की हिंसा में शामिल होने वाले आरोपियों के घर अवैध रूप से ध्वस्त कर दिये गये थे।

शीर्ष अदालत जमीयत उलमा-ए-हिंद द्वारा दायर याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें उत्तर प्रदेश सरकार को यह सुनिश्चित करने का निर्देश देने की मांग की गई थी कि राज्य में हालिया हिंसा के आरोपियों की संपत्तियों को और न तोड़ा जाए। मुस्लिम निकाय ने अपनी याचिका में कहा था कि उचित प्रक्रिया का पालन किए बिना संपत्तियों को ढहाया नहीं जाना चाहिए और इस तरह की कवायद उचित नोटिस के बाद ही की जाती है। जमीयत उलमा-ए-हिंद ने इससे पहले राष्ट्रीय राजधानी के जहांगीरपुरी इलाके में इमारतों को गिराने के मुद्दे पर भी याचिका दायर की थी।