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यूपी में एक साथ करीब 900 सरकारी वकीलों की बर्खास्तगी के क्या हैं मायने? समझिए सरकार की रणनीति

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लखनऊ: उत्तर प्रदेश सरकार (UP Government) ने हाई कोर्ट से लेकर निचली अदालतों तक सरकार का पक्ष रखने वाले सरकारी वकीलों को हटा दिया गया है। प्रदेश के करीब 900 वकीलों पर कार्रवाई हुई है। इलाहाबाद हाई कोर्ट (Allahabad High Court), लखनऊ खंडपीठ और यूपी के सभी 75 जिलों की अदालतों में सरकारी वकील के रूप में 1850 एडवोकेट की नियुक्ति है। इसमें से 900 पर कार्रवाई हो गई है। वहीं, 586 नए वकीलों की तैनाती भी कर दी गई है। उनकी नियुक्ति का आधार उनका परफॉर्मेंस बताया जा रहा है। लेकिन, इस बड़े पैमाने पर कार्रवाई के पीछे दो बड़ी वजहें साफ दिख रही है। पहली तो अधिकांश सरकारी वकीलों की नियुक्ति मायावती और अखिलेश यादव के शासनकाल में हुई थी। दूसरी, लंबे समय से अदालतों में सरकार का पक्ष रखने वाले वकील सही प्रकार से सरकार का पक्ष नहीं रख पा रहे थे। इस कारण सरकार को कई मौकों पर कोर्ट में जजों की नाराजगी का सामना करना पड़ रहा था।

कानून मंत्रालय में 841 सरकारी वकीलों के हटाए जाने के बाद से हड़कंप जैसी स्थिति है। लेकिन, इसका अंदाजा वकीलों को पहले से ही था। कानून मंत्रालय सीएम योगी आदित्यनाथ के पास है। दूसरे कार्यकाल के शपथ ग्रहण के बाद जब कानून मंत्रालय की समीक्षा हुई और पेंडिंग केस के मामलों में चर्चा हुई तो सरकारी वकीलों की शिकायतें खुलकर सामने आ गईं। इसके बाद विभागीय मंत्री ने मामले की पूरी जानकारी ली। सीएम को बताया गया कि सरकार का पक्ष रखने वाले कई वकील अयोग्य हैं। मुख्यमंत्री के निर्देश पर अयोग्य सरकारी वकीलों की स्क्रीनिंग का अभियान शुरू हुआ। जिन सरकारी वकीलों की शिकायतें मिली थी, उनकी प्राथमिकता के आधार पर जांच की गई।

प्रमुख सचिव ने लिया था इंटरव्यू
न्याय विभाग में प्रमुख सचिव न्याय एवं विधि परामर्शी प्रमोद कुमार श्रीवास्तव ने वकीलों का इंटरव्यू लिया था। अप्रैल माह में हुए इंटरव्यू में सरकारी वकीलों से भारतीय संविधान के अनुच्छेद और धाराओं के बारे में पूछताछ की गई। फास्ट इंटरव्यू के जरिए वकीलों की योग्यता को परखा गया। सवालों की झड़ी के आगे कोर्ट में अपने तर्कों से बड़े-बड़ों को चुप करा देने वाले वकील खामोश हो गए थे। कई सरकारी वकीलों के बारे में विभगा के पास शिकायत आई थी कि वे समय पर काउंटर एफिडेविट फाइल नहीं कर रहे हैं। इस कारण सरकार के सीनियर अधिकारियों को कोर्ट में पेश होना पड़ता है। कई सरकारी वकीलों के कोर्ट में न जाने का भी मामला सामने आया। शिकायत आई कि अपने सीनियर से मिलकर ये उपस्थिति दर्ज करा लेते हैं। प्रमुख सचिव के स्तर पर हुए इंटरव्यू और हर पहलू की जांच के बाद कार्रवाई कर दी गई।

कई लक्ष्य को साधने की है तैयारी
योगी सरकार नए सरकारी वकीलों की नियुक्ति के लिए कई लक्ष्यों को साधने की कोशिश कर रही है। सरकार ने इलाहाबाद हाई कोर्ट की प्रधान पीठ से 505 राज्य विधि अधिकारी हटाए गए हैं। वहीं, हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच से 336 सरकारी वकीलों की छुट्टी कर दी गई है। इनके अलावा जिलों में तैनात सरकारी वकीलों को भी हटाया गया है। सरकार ने उनके स्थान पर 586 सरकारी वकीलों की नियुक्ति कर दी है। इनमें प्रयागराज की प्रधान पीठ में 366 राज्य विधि अधिकारी नियुक्त किए गए, जबकि लखनऊ बेंच में 220 सरकारी वकीलों की नियुक्ति की गई है। माना जा रहा है कि जल्द ही दूसरी लिस्ट भी आ सकती है।

नए सरकारी वकीलों के संबंध में माना जा रहा है कि उनका झुकाव भाजपा की तरफ हो सकता है। योगी सरकार ने साफ किया है कि बेहतर तरीके से कोर्ट में सरकार का पक्ष रखने वाले वकीलों की नियुक्ति की जा रही है। इसको भी मानिए तो सरकार अब कोर्ट में तेजी से आरोपों का जवाब देने की कार्रवाई करेगी। कोर्ट केस की संख्या को कम किया जाना सरकार ने अपनी प्राथमिकता भी बताई है।

ऐसे होती है सरकारी वकीलों की नियुक्ति
सरकारी वकीलों की नियुक्ति राज्य और केंद्र सरकार की ओर से की जाती है। हाई कोर्ट में केंद्र और राज्य सरकार के वकील किसी भी मामले में सरकार पर लगने वाले आरोपों के मामले में पक्ष रखते हैं। केंद्र और राज्य सरकार हाई कोर्ट से विचार और परामर्श के आधार पर सरकारी वकीलों की नियुक्ति करती है। इसमें उनकी कोर्ट में उपस्थिति से लेकर मामलों की समझ तक पर ध्यान दिया जाता है। जिला कोर्ट में राज्य सरकार की ओर से सरकारी वकीलों की नियुक्ति होती है। सरकार अपने विवेक के आधार पर यहां नियुक्ति करती है। सरकार बदलने के बाद सरकारी वकीलों को भी अमूमन बदल दिया जाता है।

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