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Editorial:कूटनीतिक का नतीजा भारत के इशारों पर चलना ही पड़ेगा चीन को

2-8-2022

एक समय ऐसा था जब भारत और चीन के संबंधों को लेकर “हिंदी-चीनी भाई-भाई” के नारे दिए जाते थे। परंतु यह चीन की चालक और धूर्ततापूर्ण नीतियों का ही परिणाम रहा है कि समय के साथ यह नारा विलुप्त होता चला गया। आज के समय में भारत और चीन के बीच टकराव बहुच अधिक है। साथ ही दो पड़ोसी देश होने के साथ ही भारत-चीन एक दूसरे के बड़े प्रतिद्विंदी भी बनते चले जा रहे हैं। दोनों के बीच एक दूसरे से आगे निकलने की होड़ मची हुई है। बढ़ती प्रतिस्पर्धा और टकराव के कारण भारत और चीन के बीच दुश्मनी भी लगातार बढ़ती जा रही है।
देखने को मिल ही जाता है कि आज चीन कैसे हर जगह भारत विरोधी रुख अपनाए हुए है। भारत के विश्व में बढ़ते वर्चस्व को रोकने के लिए वो कई क्षेत्रीय, बहुपक्षीय और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत विरोधी रूख अपनाता रहता है। ऐसे में भारत के लिए यह बेहद ही आवश्यक हो जाता है कि वे तमाम नीतियों और रणनीतियों का पालन करते हुए चीन को लाइन पर लेकर आए। हालांकि बदलती स्थिति और हालातों के कारण भारत को ऐसे अवसर मिल रहे हैं, जिनके माध्यम से वो चीन को अपनी धुन पर नाचने को मजबूर कर सकता है।
दरअसल, भारत संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (हृस्ष्ट) का स्थायी सदस्य बनने की दावेदारी पेश कर रहा है। इसके लिए हृस्ष्ट के पांच में से चार स्थायी देश भारत के पक्ष में है। यानी वो परिषद में परर्मानेंट सीट के लिए भारत का समर्थन कर रहे हैं। हालांकि चीन ही एकमात्र ऐसा देश है जो इस मामले में अड़ंगा डाले हुए है, चीन ने भारत के स्थायी सदस्य के लिए अब तक समर्थन नहीं किया। बीते दिनों लोकसभा में विदेश राज्य मंत्री वी मुरलीधरन ने इसकी जानकारी दी थी। मंत्री ने बताया कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के पांच स्थायी सदस्यों में से चार ने द्विपक्षीय रूप से विस्तारित संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सीट के लिए भारत की उम्मीदवारी के समर्थन की आधिकारिक पुष्टि की है।
अपने बयान में मुरलीधरन ने कहा कि सरकार ने विस्तारित हृस्ष्ट में भारत के लिए स्थायी सदस्यता हासिल करने को सर्वोच्च प्राथमिकता दी। इस दिशा में सरकार ने भारत के लिए अंतरराष्ट्रीय समर्थन पाने के लिए विभिन्न पहल भी की। सभी स्तरों पर द्विपक्षीय और बहुपक्षीय बैठकों में इस मामले को लगातार उठा रहा है। इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि स्थायी सीट के समर्थन के लिए चीन को तैयार करने के प्रयासों में सरकार जुटी है।
कुछ परिस्थितियां ऐसी बन रही हैं जिसके चलते चीन संयुक्त राष्ट्र में स्थायी सीट के लिए भारत का समर्थन करने के लिए मजबूर हो सकता है, देखा जाए तो आज चीन पूरे विश्व में अलग-थलग पड़ता चला जा रहा है। यह चीन की विस्तारवादी नीतियों का ही परिणाम है कि तमाम देश चीन से विरुद्ध खड़े होने लगे हैं। ऐसे समय में चीन को आवश्यकता है एक ऐसे साथ की, जो तमाम मामलों में उसके पक्ष में उसके साथ खड़ा रहे और भारत से अच्छा विकल्प शायद ही चीन के लिए कोई होगा। वहीं चीन आज अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी अकेला पड़ता नजर आ रहा है। अमेरिका ने चीन के विरुद्ध मोर्चा खोला हुआ है और अमेरिका के नेतृत्व वाले अंतरराष्ट्रीय और बहुपक्षीय मंचों पर चीन को दरकिनार किया जा रहा है। देखा जाए तो रूस को छोड़कर तमाम वैश्विक मुद्दों को लेकर चीन का कोई साथ नहीं देता। आज चीन के साथ कोई भी खड़ा होने के लिए तैयार नहीं है।
चीन के साथ दोस्ती करने के परिणाम क्या होते है, उसे हर कोई देख चुका है। चीन छोटे देशों को अपने ऋण के जाल में फंसाकर बर्बाद कर देता है। श्रीलंका के साथ उसने ऐसा ही किया। इसके अलावा पाकिस्तान, नेपाल समेत अन्य पड़ोसी देशों के साथ वो ऐसा ही कर रहा है। यही कारण है कि बचे हुए देश उसकी इन चालों को समझते हुए चीन से दूर हो गए।
जबकि दूसरी ओर वियतनाम, फिलीपींस और इंडोनेशिया जैसे पड़ोसी देश, भारत के साथ अपने रक्षा संबंधों को सुरक्षित कर रहे हैं। ऐसे में भारत इस मामले में चीन से बेहतर स्थिति में नजर आता है।

इसके अलावा चीन की अर्थव्यवस्था पर भी इस वक्त संकट के बादल छाए हुए हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार कठोर लॉकडाउन और चीनी वायरस के प्रकोप के कारण चीन की सकल घरेलू उत्पाद का 54.4त्न और आधी आबादी नकारात्मक रूप से प्रभावित हुई। वर्ष 2022 की पहली तिमाही में चीन ने केवल 0.4त्न का सकल घरेलू उत्पाद का विस्तार देखा है। इसके अतिरिक्त उभरते रियल एस्टेट क्षेत्र, जो चीन के सकल घरेलू उत्पाद का 29त्न हिस्सा है, उसने देश को दिवालियापन के कगार पर लाकर खड़ा कर दिया है। अगर लंबी अवधि तक ऐसा ही चलता रहा, तो चीन को भारी नुकसान होगा। ऐसे में भारत ही वो देश है, जो इन हालातों में चीन की मदद कर सकता है।

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चीनी कंपनियों से है कड़ा मुकाबला

देखा जाए तो भारत ने पिछले कुछ समय में चीनी कंपनियों के आयात का मुकाबला करने के लिए कई कदम उठाए है। यहां ध्यान देने योग्य है कि चीन के सकल घरेलू उत्पाद का 18त्न माल और सेवाओं के निर्यात से ही आता है। ऐसे में भारत अगर इन नीतियों को और आगे बढ़ाता है, तो चीनी व्यापार को अधिक गिरावट देखनी पड़ सकती है जो उसके लिए बेहद ही नुकसानदेह साबित होगा। वैसे तो चीन दुनिया पर अपना वर्चस्व कायम करने और सुपरपॉवर बनने के सपने देख रहा है, परंतु यह सभी स्थितियां उसका सपना चकनाचूर करने के लिए काफी है।

तमाम तरह की आर्थिक, सामाजिक और अंतरराष्ट्रीय परिस्थितियों को देखते हुए यह चीन के लिए बेहद ही जरूरी हो जाता है कि उसके पक्ष में कोई मजबूती से खड़ा रहे। भारत ऐसा कर सकता है। परंतु इसके लिए यह बेहद ही जरूरी होगा कि चीन पहल करे और भारत की मदद करने की शुरुआत करे। वे संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सीट के लिए भारत का समर्थन करे। अगर चीन ऐसा नहीं करता, तो यह उसके लिए ही नुकसानदेह होगा क्योंकि भारत फिर न तो चीन को उसकी अर्थव्यवस्था संभालने में मदद करेगा और न ही अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उसके पक्ष में खड़ा रहेगा। ऐसे में चीन पूरे विश्व में अलग-थलग पड़ जाएगा और वो स्वयं को बर्बादी की कगार पर ले जाएगा।