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Editorial: ईंधन पर निर्यात शुल्क लगाना सकारात्मक फैसला

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2-6-2022

केंद्र सरकार ने डीजल पर निर्यात शुल्क 13 रुपये प्रति लीटर और पेट्रोल पर 6 रुपये प्रति लीटर की दर से लगा दिया है। सरकार ने एटीएफ के निर्यात पर 6 रुपये प्रति लीटर का उपकर भी लगाया। वित्त मंत्रालय के अनुसार, टैक्स लगाने का मकसद ईंधन की घरेलू उपलब्धता को बढ़ाना है। हालांकि, मंत्रालय के बयान के अनुसार यह घरेलू कीमतों को प्रभावित नहीं करेगा।
एक और सरकारी अधिसूचना के अनुसार, सरकार ने उच्च अंतरराष्ट्रीय तेल कीमतों से उत्पादकों को होने वाले अप्रत्याशित लाभ को समाप्त करने के लिए घरेलू स्तर पर उत्पादित कच्चे तेल पर 23,230 रुपये प्रति टन अतिरिक्त कर लगाया है। इसके अलावा, छोटे उत्पादक जिनका पिछले वित्तीय वर्ष में कच्चे तेल का वार्षिक उत्पादन 2 मिलियन बैरल से कम है इस उपकर से मुक्त होंगे। तेल निर्यात पर कर विशेष रूप से निजी क्षेत्र तेल रिफाइनरों को ध्यान में रखकर लगाया गया है जो यूरोप और अमेरिका जैसे बाजारों में ईंधन के निर्यात से भारी लाभ प्राप्त करते हैं। सरकारी आदेशों में घोषित नए करों से रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड (आरआईएल) और रूसी तेल प्रमुख रोसनेफ्ट के स्वामित्व वाली नायरा एनर्जी और तेल उत्पादक जैसे कि ऑयल एंड नेचुरल गैस कॉर्प, ऑयल इंडिया लिमिटेड और वेदांत लिमिटेड जैसे तेल रिफाइनरों की कमाई में सेंध लगेगी। इस खबर के बाद रिलायंस इंडस्ट्रीज, मैंगलोर रिफाइनरी एंड पेट्रोकेमिकल्स, वेदांत और ऑयल एंड नेचुरल गैस कॉर्प (ह्रहृत्रष्ट) के शेयरों में तेजी से गिरावट आयी है।
घरेलू आपूर्ति को बढ़ावा देने के उद्देश्य से सरकार ने पेट्रोल, डीजल और विमानन टरबाइन ईंधन (एटीएफ) के लिए निर्यात शुल्क पेश किया है, साथ ही कच्चे तेल की उच्च कीमतों से लाभान्वित होने वाले तेल उत्पादकों पर अप्रत्याशित कर भी लगाया गया है। सरकार के इस नए फैसले से अब निर्यातकों को पहले घरेलू बाजार की ईंधन आवश्यकताओं को पूरा करना होगा। साथ ही सरकार के इस कदम से देश में ईंधन की कमी को कम करने में मदद मिलेगी। निर्यात पर प्रतिबंध का उद्देश्य पेट्रोल पंपों पर घरेलू आपूर्ति को कम करना भी है क्योंकि मध्य प्रदेश, राजस्थान और गुजरात जैसे राज्यों में कई पेट्रोल पंप सूखे पाए गए क्योंकि निजी रिफाइनर स्थानीय स्तर पर बेचने की तुलना में भारी मुनाफे के कारण ईंधन का निर्यात करना पसंद कर रहे थे।
सरकार की अधिसूचना के अनुसार, घरेलू क्रूड उत्पादक घरेलू रिफ ाइनरियों को अंतरराष्ट्रीय समता कीमतों पर क्रूड बेचते हैं यानी तेल की जो कीमत बाहर विदेश में है उसी कीमत पर वह तेल भारत में भी बेचा जाता है। परिणाम स्वरूप घरेलू क्रूड उत्पादकों को अप्रत्याशित लाभ हो रहा है। इसे ध्यान में रखते हुए कच्चे तेल पर 23,250 रुपये प्रति टन का उपकर लगाया गया है। हालांकि कच्चे तेल का आयात इस उपकर के अधीन नहीं होगा।

भारत सरकार के इस कदम के पीछे रूस और यूक्रेन का युद्ध भी एक कारण है। दरअसल,यूक्रेन पर रूस के आक्रमण के बाद कई देशों ने रूस से अपने व्यापारिक रिश्ते तोड़ दिये हैं। ऐसे में भारत ही एक ऐसा देश है जो रूसी कच्चे तेल के शीर्ष खरीदार के रूप में उभरा है क्योंकि रूस से निर्यातित तेल पर कई देश निर्भर हैं लेकिन रूस से व्यापारिक रिश्ते तोडऩे के बाद वे किसी दूसरे तेल निर्यातक की खोज में हैं। ऐसे में ऊंचे अंतरराष्ट्रीय उत्पाद की कीमतों ने भारत के निजी रिफाइनरों को निर्यात को बढ़ावा देने के लिए प्रेरित किया है।

अब जब देश की कंपनियां तेल देश में बेचने के बजाए अधिक ध्यान तेल का निर्यात करने में दे रही हैं तो इससे देश में तेल की कमी की नयी समस्या पैदा हो गयी है जिसे सुलझाने के लिए अब राज्य अधिक आयात को विवश है। इस तरह के कर लगाने की अटकलें इस साल मई से चल रही थीं जब यूके सरकार ने 2022 में कच्चे तेल और गैस कंपनियों जिनका सालाना लाभ 50त्न से अधिक था उन पर 25त्न अप्रत्याशित कर की घोषणा की थी।

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