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श्यामा प्रसाद मुखर्जी के लिए जम्मू–कश्मीर भारत का अभिन्न अंग बना गया यही सच्ची श्रद्धांजलि

भारतीय जनता पार्टी के संस्थापक स्वर्गीय डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी के बलिदान दिवस पर आज भाजपा मुख्यालय में श्यामा प्रसाद मुखर्जी के प्रतिमा पर पुष्पांजलि देकर भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा ने श्रद्धा सुमन अर्पित किया। जगत प्रकाश नड्डा ने कहा कि आज के दिन हम सब लोग भाजपा के करोड़ों कार्यकर्ता डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी के बलिदान दिवस पर भावभीनी श्रद्धांजलि दे रहे हैं। अपनी ओर से और भाजपा के सभी कार्यकर्ता की ओर से डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। नड्डा ने कहा कि भारत के महान राष्ट्रभक्त, शिक्षाविद, सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के द्योतक, डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी को काल ने 1953 में आज ही के दिन हम से छीन लिया था।

नड्डा ने कहा कि डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी बहुआयामी प्रतिभा के मालिक थे और उनकी प्रतिभा से हमसब लोग भली भांति परिचित हैं। एक राष्ट्रभक्त, शिक्षाविद, डॉ. श्याम मुखर्जी का जन्म 1901 को हुआ था। वे 33 वर्ष की उम्र में कलकत्ता विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर बने। उनकी विद्वता का सबसे बड़ा परिचय है कि वे बहुत ही अल्प आयु में वे वाइस चांसलर बने।वाइस चांसलरशीप पूरी करने के बाद वे यूनाईटेड बंगाल के विधानसभा के सदस्य बने। बाद में विचार को ध्यान में रखते हुए वे विधान सभा से त्यागपत्र देकर फिर से निर्दलीय चुनाव लड़े और वे बंगाल के वित्त मंत्री भी रहे।आजादी के बाद पूरा बंगाल पाकिस्तान में जाने की स्थिति में आ रहा था। उन्होंने बंगाल को पाकिस्तान में जाने से बचाने का काम किया।

पश्चिम बंगाल देखते हैं कि यह उनकी ही देन है कि आज का पश्चिम बंगाल भारत में है।वे प्रथम नेहरू कैबिनेट के मंत्री भी रहे। विचारो के कारण उन्होंने नेहरू जी के कैबिनेट से इस्तीफा दिया। एक उद्योग मंत्री के रूप में उन्होंने बहुत अच्छा काम किया। देश के औद्योगिक नीति की नींव रखी। लेकिन अपने विचार के कारण वे पद को छोड़ते हुए जनसंघ की स्थापना की। उस समय नेहरू की तुष्टीकरण की नीति से दुखी होकर उन्होंने भारतीय जनसंघ को स्थापित करते हुए देश को मजबूत एवं अखंड रखने के लिए अपनी लड़ाई लड़ी। गत प्रकाश नड्डा ने कहा कि डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने एक देश में दो निशान, दो विधान, दो प्रधान नहीं चलेगा, इस नारे को पूरा करते हुए जम्मू कश्मीर में लागू धारा 370 का विरोध किया. धारा 370 के कारण जम्मू एवं कश्मीर को विशेष दर्जा दिलाता था और उसे भारत के साथ अपना संविधान एवं अपना झंडा भी था।

श्यामा प्रसाद मुखर्जी एक आंदोलन शुरू किया। 11 मई 1953 को इसके विरोध में बिना परमिट लिए उन्होंने जम्मू एवं कश्मीर के बार्डर में प्रवेश करने की कोशिश की। वे अरेस्ट हुए। उन्होंने सत्याग्रह किया। उन्हें 11 मई को गिरफतार कर श्रीनगर के जेल में रखा गया। वहां आज ही के दिन सुबह में 23 जून 1953 को बहुत ही संदेहास्पद स्थिति में अंतिम सांस ली और उनकी मृत्यु जेल के अन्दर ही हो गयी। उस समय आकाशवाणी और ऑल इंडिया रेडियो ने बहुत देर से यह खबर प्रसारित की। बहुत ही संदेहास्पद स्थिति में उनकी मौत हुई थी। उनकी पूज्य माता जी ने यह मांग की थी कि यह मौत सामान्य मृत्यु नहीं है और इसकी जांच होनी चाहिए। उन्होंने नेहरू से इसकी अपील की और पत्र भी लिखी थी।जगत प्रकाश नड्डा ने कहा कि डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी जी की पूज्य माता जी योगमाया देवी ने पंडित जवाहर लाल नेहरू को पत्र लिखा था कि “मैं तम्हारी सफाई नहीं चाहती हूं बल्कि जांच चाहती हूं।

तुम्हारी दलीले थोथी है और तुम सत्य का सामना करने से डरते हो। याद रखो, तुम्हे जनता और ईश्वर के सामने जबाव देना होगा। मैं अपने पुत्र के मृत्यु के लिए कश्मीर सरकार को जिम्मेदार समझती हूं और उस पर आरोप लगाती हूं कि उसने ही मेरे पुत्र की जान ली है। मैं तुम्हारी सरकार पर आरोप लगाती हूं कि इस मामले को छुपाने और सांठगांठ करने का प्रयत्न किया गया है।“उनकी पूज्य माता जी ने 1953 में नेहरू जी को यह पत्र लिखी थी। हमारे करोड़ो कार्यकर्त्ता के सामने यह प्रश्न वाचक चिन्ह है कि उन्होंने संदेहास्पद तरीके से अंतिम सांस ली थी। जवाहर लाल नेहरू जी ने इसका कोई जबाव नहीं दिया। यह अपने आप में बहुत सारे राज छिपाता है।