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Loksabha By-Election: रामपुर और आजमगढ़ में कम वोटिंग प्रतिशत बदल न दे पूरी तस्वीर, क्यों परेशान दिख रही सपा?

लखनऊ: उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) में लोकसभा उप चुनाव (Loksabha By Election) की वोटिंग के बाद एक ही सवाल उठ रहा है कि क्या इस बार भी उप चुनाव झटका देने वाली है? दरअसल, उप चुनावों में झटकों का इतिहास रहा है। यूपी चुनाव 2017 के बाद उत्तर प्रदेश में दो लोकसभा सीटें खाली की गई थीं। गोरखपुर से सांसद योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) को मुख्यमंत्री की जिम्मेदारी मिली। वहीं, फूलपुर से सांसद केशव प्रसाद मौर्य (Keshav Prasad Maurya) को डिप्टी सीएम बनाया गया। दोनों सीटों पर लोकसभा उप चुनाव हुए और गुस्साए वोटरों ने दोनों ही सीटों पर भाजपा को करारी हार का स्वाद चखाया। यूपी चुनाव 2022 में भी दो सांसदों ने इस्तीफा दिया। आजमगढ़ से पूूर्व सांसद और समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) और रामपुर से पूर्व सांसद आजम खान (Azam Khan) ने विधायक बनने के बाद सांसदी से इस्तीफा दे दिया। इसके बाद लोकसभा उप चुनाव की वोटिंग प्रक्रिया गुरुवार को पूरी कराई गई। इस वोटिंग प्रक्रिया में मतों का प्रतिशत काफी कम रहा और यह सपा के लिए टेंशन खड़ी कर रहा है। वोटों की गिनती से पहले यह सवाल उठाए जा रहे हैं कि क्या इस बार भी उप चुनाव के मतदाता सीट छोड़ने वाले सांसदों से नाराज होकर उन्हें सबक सिखाएंगे।

2017 में योगी नहीं बचा पाए थे अपना गढ़
लोकसभा चुनाव 2014 में योगी आदित्यनाथ ने गोरखपुर लोकसभा सीट से 3,12,783 मतों के बड़े अंतर से जीत दर्ज की। भाजपा सांसद को कुल पड़े वोट का 52 फीसदी हिस्सा मिला। वहीं, उनके खिलाफ खड़ी सपा की राजमती निषाद महज 22 फीसदी वोट ही हासिल कर पाईं। वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव के बाद योगी को प्रदेश का मुख्यमंत्री बना दिया गया। 2018 में लोकसभा चुनाव हुए और भाजपा गोरखपुर का गढ़ 21,783 वोटों के अंतर से हार गई। सपा के प्रवीण कुमार निषाद को 4,56,513 वोट मिले तो भाजपा के उपेंद्र दत्त शुक्ला 4,34,788 वोट हासिल करने में ही कामयाब रहे। सीएम बनने के बाद भी लोगों का गुस्सा भाजपा पर दिखा। हालांकि, वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में एक बार फिर भाजपा के रवि किशन ने बड़े अंतर से जीत दर्ज कर भाजपा के गढ़ को बचाए रखा।

भाजपा सरकार ने आजमगढ़ और रामपुर के लोकसभा उपचुनावों में सत्ता का दुरूपयोग करने में कोई कसर नहीं छोड़ी और मतदान को प्रभावित करने के लिए तमाम तरह के अवरोध खड़े किए गए। निर्वाचन आयोग से की गई शिकायतों के बावजूद निर्वाचन मशीनरी कई मतदान केन्द्रों पर मूकदर्शक बनी रही, फिर भी मतदाताओं ने भाजपा को हराने का काम किया है।

अखिलेश यादव, राष्ट्रीय अध्यक्ष सपा

केशव मौर्य की सीट पर भी हारी थी भाजपा
फूलपुर लोकसभा सीट पर लोकसभा चुनाव 2014 में भाजपा के केशव प्रसाद मौर्य ने सपा के धर्म राज सिंह पटेल को 3,08,308 वोटों के भारी अंतर से मात दी थी। केशव मौर्य को 5,03,564 वोट मिले थे, जबकि धर्म राज सिंह पटेल महज 1,95,256 वोट ही पा सके थे। वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव के बाद केशव प्रसाद मौर्य को योगी सरकार में नंबर दो पोजिशन दिया गया। डिप्टी सीएम बनने के बाद उन्होंने फूलपुर सीट खाली की। इसके बाद 2018 के लोकसभा चुनाव में सपा के नागेंद्र प्रताप सिंह पटेल ने भाजपा के कौशलेंद्र सिंह पटेल को 59,460 वोटों के अंतर से हराया। नागेंद्र पटेल को 3,42,922 वोट मिले और कौशलेंद्र पटेल को 2,83,462 वोट मिले थे। हालांकि, वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में एक बार फिर भाजपा की केसरी पटेल ने 1,71,968 वोटों के अंतर से जीत दर्ज कर इस सीट को वापस हासिल किया।

पुलिस ज्यादती कर रही है। हर पोलिंग बूथ पर 50-50 गाड़ी पुलिस खड़ी है। लोग मोहल्लों से वोट डालने के लिए निकल नहीं पा रहे हैं। पुलिस लोगों से गलत व्यवहार कर रही है। लोगों पर डंडे बरसाए गए। प्रशासन ने वोटिंग के दौरान भेदभाव किया है।

आजम खान, विधायक रामपुर

अब अखिलेश और आजम के सामने चुनौती
अब अखिलेश यादव और आजम खान के सामने अपना गढ़ बचाने की चुनौती है। रामपुर में वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में पहली बार आजम खान ने सांसदी का चुनाव जीता। उन्होंने भाजपा की जया प्रदा को 1,09,997 वोटों के अंतर से हराया है। आजम खान को 5,59,177 और जया प्रदा को 4,49,180 वोट मिले थे। आजम को कुल पड़े वोट का 53 फीसदी और जया प्रदा को 42 फीसदी वोट मिले थे। वहीं, आजमगढ़ में अखिलेश यादव ने भाजपा के दिनेश लाल यादव निरहुआ को 2,59,874 वोटों के बड़े अंतर से हराया था। अखिलेश यादव को 6,21,578 और निरहुआ को 3,61,704 वोट मिले थे। अखिलेश को कुल पड़े वोट का 60 फीसदी और निरहुआ को 35 फीसदी वोट मिला था।

कम वोट ने गड़बड़ा दिया समीकरण
लोकसभा चुनाव 2019 में आजमगढ़ लोकसभा सीट पर 57.40 फीसदी वोटरों ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया था। इससे पहले भी वोटिंग प्रतिशत 55 फीसदी के करीब रहा है। वर्ष 2019 के चुनाव में समाजवादी पार्टी के साथ बहुजन समाज पार्टी का गठबंधन था, इस कारण आजमगढ़ से लेकर रामपुर तक माहौल सपा के पक्ष में दिखा। लेकिन, इस बार आजमगढ़ में बसपा ने उम्मीदवार उतारे तो रामपुर में आमने-सामने का मुकाबला है। ऐसे में अखिलेश यादव और आजम खान को यूपी की सियासत में अपने रसूख को बचाए रखने के लिए दोनों सीटों पर जीत का परचम लहराना जरूरी हो गया था। हालांकि, रामपुर में 39.02 फीसदी और आजमगढ़ में 48.58 फीसदी वोटिंग ने समाजवादी पार्टी की परेशानी बढ़ा दी है।

हर तरफ एक ही सवाल है कि जो वोटर निकल कर मतदान केंद्रों पर नहीं पहुंचे, वे किसके थे? क्या सपा के वोटरों की नाराजगी सांसदों के मैदान से हटने को लेकर बढ़ गई? सबसे बड़ा मसला तो अखिलेश यादव के उप चुनाव के मैदान में नहीं उतरने को लेकर खड़ा हुआ है। लोगों की ओर से यह भी कहा जाने लगा है कि वे जिसे अपना गढ़ मान रहे हैं, वहां से उन्हें झटका भी लग सकता है। क्या ऐसा संभव है? जवाब के लिए रविवार तक का इंतजार करिए।