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राष्ट्रपति चुनाव: द्रौपदी मुर्मू के नाम पर सपा और बसपा का लिटमस टेस्ट, क्या करेंगे अखिलेश और मायावती?

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लखनऊ: देश में राष्ट्रपति चुनाव (Presidential Election) की राजनीति काफी गरमा गई है। भारतीय जनता पार्टी (Bhartiya Janata Party) ने देश के अगले राष्ट्रपति के उम्मीदवार के रूप में द्रौपदी मुर्मू (Droupadi Murmu) का नाम तय कर दिया है। द्रौपदी मुर्मू का नाम सामने आने के बाद अब कई राजनीतिक दलों के लिए मुश्किलें बढ़ने लगी हैं। भाजपा ने देश में पहली आदिवासी महिला राष्ट्रपति को देने की घोषणा कर दी है। वर्ष 2017 में भाजपा ने रामनाथ कोविंद (Ramnath Kovind) को चुनावी मैदान में उतार कर दलित चेहरे को देश का राष्ट्रपति बनाने की घोषणा की थी, तब भी राजनीतिक दलों के लिए मुश्किल हो गई थी। हालांकि, कांग्रेस की ओर से तब विपक्ष के उम्मीदवार के रूप में दलित महिला चेहरे मीरा कुमार (Mira Kumar) को चुनावी मैदान में उतारने की घोषणा की। भाजपा की रणनीति के आगे विपक्ष की राजनीति फेल हो गई। भाजपा उम्मीदवार को उस समय समाजवादी पार्टी (Samajwadi party) और बहुजन समाज पार्टी (BSP) ने समर्थन देने की घोषणा की थी। इस बार दोनों दलों के निर्णय पर सबकी नजर होगी। वैसे द्रौपदी मुर्मू की राह आसान होती दिख रही है। उनके अपने राज्य ओडिशा से सत्ताधारी बीजू जनता दल ने उनको समर्थन देने की घोषणा कर दी है। सीएम नवीन पटनायक की इस घोषणा से साफ है कि राष्ट्रपति चुनाव को लेकर अब स्थिति साफ होती जा रही है। आने वाले समय में ओडिशा के निकटवर्ती राज्य आंध्र प्रदेश से भी उनको समर्थन मिल सकता है। हालांकि, सबकी नजर देश के सबसे बड़े प्रदेश यूपी के दलों की ओर से बनने वाले समीकरण पर रहने वाली है।

उत्तर प्रदेश में राष्ट्रपति चुनाव को लेकर हलचल तेज होने लगी है। इसका कारण यहां का वोट वैल्यू है। यूपी में एक विधायक के पास सबसे अधिक 208 वोट वैल्यू है। इस प्रकार 403 विधायकों के वोट का मूल्य 83,824 है। हालांकि, सांसदों का वोट वैल्यू इस बार 708 से घटकर 700 रह जाएगा। यूपी में वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव के बाद एनडीए के पास करीब 325 विधायक थे। वहीं, सपा-कांग्रेस गठबंधन 47 और बसपा 19 सीटों पर जीती थीं। यूपी चुनाव 2022 में यूपी में एनडीए विधायकों की संख्या घटकर 273 रह गई है। वहीं, सपा गठबंधन के पास 125 विधायक हैं। वहीं, बसपा के पास केवल एक विधायक हैं। हालांकि, सपा के पास 3 और बसपा के पास 10 सांसद भी हैं। ऐसे में इन दोनों दलों की रणनीति पर नजर रहेगी।

समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव ने पहले ही तृणमूल कांग्रेस अध्यक्ष ममता बनर्जी की ओर से तय किए जाने वाले उम्मीदवार को समर्थन देने की घोषणा की थी। ममता बनर्जी की पार्टी की ओर से यशवंत सिन्हा के नाम पर सहमति बनी है। देश के 13 विपक्षी दलों की ओर से उन्हें समर्थन देना तय है। ऐसे में अखिलेश यादव क्या आखिरी समय में अपनी नीति में बदलाव करेंगे? यह देखना दिलचस्प रहेगा। वहीं, मायावती पर हर किसी की नजर रहने वाली हैं। दलित और महिला की राजनीति करने वाली मायावती क्या इस बार एक आदिवासी महिला के समर्थन में खड़ी होती हैं या नहीं? इस पर अभी तक कोई फैसला नहीं आया है।
Draupadi Murmu: कुछ पॉइंट्स में जानें कौन हैं NDA की राष्‍ट्रपति पद की उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू, अब तक कैसा रहा राजनीतिक सफर
भाजपा ने द्रौपदी मुर्मू के जरिए साधी बड़ी राजनीति
भाजपा ने द्रौपदी मुर्मू का नाम आगे करके विपक्षी दलों की राजनीति को साधने का प्रयास किया है। द्रौपदी मुर्मू एक ऐसी नेता हैं, जिन्होंने काफी निचले स्तर से राजनीति की शुरुआत की। 64 वर्षीय द्रौपदी मुर्मू ओडिशा के मयूरभंज जिले की रहने वाली हैं। शिक्षक के रूप में अपने करियर की शुरुआत करने वाली द्रौपदी मुर्मू ने बाद में राजनीति में आने का फैसला लिया। वे आदिवासी समाज को राजनीतिक रूप से मजबूत करने की कोशिश करती रही हैं। वे वर्ष 1997 में पहली बार पार्षद बनीं। इसके बाद भाजपा ने उन्हें रायरंगपुर विधानसभा सीट से उम्मीदवार बनाया और वे दो बार विधायक बनीं। 6 मार्च 2000 से 6 अगस्त 2002 तक वे वाणिज्य परिवहन विभाग में राज्य मंत्री स्वतंत्र प्रभार रही थीं। 6 अगस्त 2002 को उन्हें मत्स्य पालन और पशु संसाधन विकास राज्य मंत्री बनाया गया। इस पद पर वे 16 मई 2004 तक रहीं।
Who is Draupadi Murmu: कौन हैं द्रौपदी मुर्मू जिन्‍हें बीजेपी ने बनाया है राष्ट्रपति उम्मीदवार?
वर्ष 2006 से 2009 तक द्रौपदी मुर्मू ओडिशा प्रदेश भाजपा अनुसूचित जनजाति मोर्चा की अध्यक्ष रहीं। वर्ष 2007 में उन्हें ओडिशा के सर्वश्रेष्ठ विधायक के लिए नीलकंठ अवार्ड से सम्मानित किया गया। द्रौपदी मुर्मू को 18 मई 2015 को झारखंड का राज्यपाल बनाया गया। झारखंड के गठन के 15 साल बाद पहली आदिवासी महिला राज्यपाल के रूप में उन्होंने कार्यभार संभाला। वे इस पद पर 18 मई 2020 तक रहीं। अब उन्हें राष्ट्रपति का उम्मीदवार बनाया गया है तो भाजपा इनके माध्यम से एक बड़े वर्ग को संदेश देने की कोशिश में है। पार्टी की ओर से पहले एक दलित और फिर आदिवासी महिला नेता को राष्ट्रपति बनाए जाने के फैसले से निश्चित तौर पर एक बड़ा संदेश जाएगा। आदिवासी और दलित समाज को सम्मान देने के रूप में इस पूरे मामले को लिया जा रहा है। इस स्थिति में अन्य राजनीतिक दलों के लिए मुश्किल होगी कि वे उनके खिलाफ खुलकर विरोध में आएं। भाजपा इसको सीधे-सीधे बहुजन समाज के सम्मान-अपमान से जोड़कर पेश करने में पीछे नहीं हटेगा।
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सपा-बसपा के लिए मुश्किलें
वर्ष 2017 में जब रामनाथ कोविंद को राष्ट्रपति उम्मीदवार बनाया गया था तो सपा और बसपा ने उनको समर्थन दे दिया था। इसका कारण तब बताया गया था कि रामनाथ कोविंद उत्तर प्रदेश के रहने वाले हैं। भले ही उस समय वे बिहार के राज्यपाल थे, लेकिन कानपुर कनेक्शन के कारण समाजवादी पार्टी ने उन्हें समर्थन दिया। वहीं, बहुजन समाज की राजनीति करने वाली बसपा सुप्रीमो मायावती ने समर्थन की घोषणा कर खुद को इस वर्ग से जोड़े रखने की कोशिश करती दिखी थीं। मायावती ने तब कहा भी था कि वे भारतीय जनता पार्टी की नीतियों का समर्थन नहीं करते हैं, लेकिन दलित समाज के उम्मीदवार को समर्थन देंगे। सपा और बसपा के समर्थन की घोषणा के बाद भाजपा उम्मीदवार के आराम से जीतने की संभावना प्रबल हो गई थी। अब एक बार फिर इन दोनों दलों पर हर किसी की निगाह है।

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