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UP Chunav: हाजी याकूब कुरैशी, शाहिद अखलाक… पश्चिमी यूपी के चुनावी दंगल से क्यों नदारद हैं चर्चित मुस्लिम चेहरे?

शादाब रिजवी/मेरठ: चुनावी रण 2022 में भले ही नए मुस्लिम सियासी चेहरे दम भरते दिख रहे हों लेकिन पहली बार यह भी देखा जा रहा है कि वेस्ट यूपी के सियासी मुस्लिम चेहरे चुनावी दंगल से गायब हैं। एक तरह से वेस्ट यूपी के हर चुनाव में गरम रहने वाली मुस्लिम सियासत एकदम बदली बदली दिख रही है। ये हालात तब है जब वेस्ट यूपी में मुस्लिमों की आबादी हर जिले में काफी है। मुस्लिम आबादी अधिक होने के कारण हर चुनाव में बीजेपी के अलावा सभी सियासी दल मुस्लिमों के खानदानी सियासतदानों और चर्चित चेहरों के यहां नतमस्तक होते रहे हैं। इस बार तस्वीर और हवा बदली हुई है। हालांकि सियासी जानकार इसे राजनीति के बदलते चेहरे के तौर पर देख रहे हैं।

बात अगर मेरठ की करें तो यहां मौजूदा दौर में बीएसपी के कद्दावर नेता और पूर्व मंत्री हाजी याकूब कुरैशी और मेरठ के पूर्व सांसद और मेयर शाहिद अखलाक का घर मुस्लिम राजनीति के केंद्र में रहता था। हाजी याकूब कुरैशी कई बार विधायक और मंत्री रहे। उनके बेटे हाफिज इमरान याकूब बीएसपी से राजनीति कर रहे हैं। सरधना से विधायक का चुनाव लड़ चुके हैं। याकूब कुरैशी के चाचा नेता हकीमुद्दीन लंबे वक्त तक कांग्रेस के जिलाध्यक्ष रहे। भाई युसुफ कुरैशी कांग्रेस में प्रदेश और राष्ट्रीय स्तर पर पद लेकर राजनीति करते हैं।

इसी तरह शाहिद अखलाक खुद सांसद और मेयर रहने के साथ उनके पिता हाजी अखलाक मेरठ शहर से विधायक रह चुके हैं। राशिद अखलाक एक बार बीएसपी से विधायक का चुनाव लड़ चुके हैं लेकिन इस बार दोनों ही परिवार चुनाव से दूर हैं। यूं तो मेरठ में पूर्व मंत्री शाहिद मंजूर का भी सियासी घराना हैं। उनके पिता मंजूर अहमद कई बार विधायक रहे। इस बार शाहिद मंजूर किठौर से एसपी कैंडिडेट हैं, लेकिन मेरठ के बीएसपी के पूर्व प्रदेशाध्यक्ष बाबू मुनकाद अली, पूर्व विधायक परवेज हलीम (उनके पिता अब्दुल हलीम पूर्व मंत्री रहे) के परिवार से कोई चुनावी मैदान में नहीं हैं।

पूर्व विधायक सैयद जकीउद्दीन के बेटे रिहानुद्दीन इस बार कांग्रेस से सरधना से चुनाव लड़ रहे हैं। बागपत के पूर्व मंत्री नवाब कोकब हमीद मुस्लिम सियासत का बड़ा चेहरा रहे हैं। उनके निधन के बाद अब उनके बेटे को बागपत से आरएलडी ने टिकट दिया है। मेरठ में जनरल शाहनवाज, मोहसिना किदवई मुस्लिम सांसद रहे लेकिन उनके परिवार से कोई चुनाव में सक्रिय नहीं है। पूर्व विधायक रहे सखावत हुसैन, नजीर अंसारी, अब्दुल वहीद कुरैशी के परिवार भी सियासी हलचल से दूर हैं।

मुस्लिम सियासत की तस्वीर
मुस्लिम बहुल सीटों पर सत्ता की भागीदारी 63 प्रतिशत तक हुआ करती थी। मंडल कमंडल के मुद्दे के बाद मुस्लिम राजनीति की हिस्सेदारी घटती रही। 2017 में तो मात्र 16.4 प्रतिशत रह गई। 2012 में विधानसभा चुनाव में सबसे ज्यादा 67 मुस्लिम विधायक जीते थे, बाद में इनकी तादाद 69 हो गई थी, इनमें से 45 विधायक समाजवादी पार्टी के थे। दरअसल, 1991 से 2007 के बीच दलित मुस्लिम समीकरण पर निर्भर पार्टियों ने 150 से 200 मुस्लिम प्रत्याशी को टिकट दिए लेकिन जीत 20 से 30 तक ही सीमित रही। 2012 में 230 नामांकन में से केवल 62 जीते। 2017 में 180 मुस्लिम प्रत्याशी चुनाव लड़े और 23 विधायक जीते।

वेस्ट यूपी के जिलों में मुस्लिमों की जनसंख्या

जिला- प्रतिशत
मुरादाबाद 50.80%
रामपुर 50.57
बिजनौर 43.04
सहारनपुर 41.95
शामली 41.73
मुजफ्फरनगर 41.11
अमरोहा 40.78
मेरठ 34.43

(नोट: आंकड़े 2011 की जनगणना पर आधारित हैं)

हाजी याकूब कुरैशी (फाइल फोटो)