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UP Chunav 2022: 1952 से अब तक महिला जनप्रतिनिधियों से सूखी है मऊ, आज तक न सांसद न विधायक चुनी गई हैं महिलाएं

वेद नारायण मिश्रा, मऊ
आज़ादी के बाद 1952 से लेकर आज तक लोकसभा और विधानसभा चुनाव आते-जाते रहे, लेकिन मऊ की सरजमीं महिला जनप्रतिनिधियों से सूखी रही है। मऊ की एकमात्र लोकसभा और चार विधानसभा सीटों पर कोई भी महिला न तो सांसद बन पाई और न ही विधायक बनी है।

खोखली साबित होती हैं महिलाओं की बराबरी की बातें
समाज में महिला और पुरुषों की बराबरी करने वाले और महिलाओं को बराबरी का दर्जा देने की बात करने वाले दल चुनाव आते ही चुनाव में महिलाओं को टिकट देने के नाम पर चुप्पी साध लेते हैं।

अब इसे मऊ जिले के लिए दुर्भाग्य की बात ही कही जा सकती है कि जहां पूरे देश में महिला सशक्तीकरण की बात कही जा रही है तो वहीं मऊ जिले के इतिहास में 1952 से लेकर आज तक कभी कोई महिला 4 में से किसी भी विधानसभा से न तो विधायक चुनी गई और न ही एक मात्र लोकसभा सीट घोसी से कोई महिला सांसद चुनी गई।

गाहे-बगाहे टिकट भी मिला, पर जीत नहीं
घोसी लोकसभा की बात करें तो कांग्रेस के दिग्गज नेता कल्पनाथ राय की कर्मभूमि रही है। इस सीट पर उनके निधन के बाद उनकी पत्नी डॉ. सुधा राय 1999, 2004 और 2009 में कांग्रेस उम्मीदवार रहीं, लेकिन उन्हें हर बार हार का सामना करना पड़ा।

विधानसभा सीटों की बात करें तो 2012 में घोसी विधानसभा से कांग्रेस ने राना खातून को अपना उम्मीदवार बनाया था, लेकिन उन्हें भी हार का सामना करना पड़ा। हालांकि, राना खातून 1995 से 2000 तक नगर पालिका मऊ की निर्विरोध अध्यक्ष रहीं।

कल्पनाथ राय की बहू सीता राय जनता दल यूनाइटेड से 2002 और 2007 में मऊ की सदर विधानसभा सीट से उम्मीदवार रहीं, लेकिन उन्हें भी जनता ने नकार दिया। फिलहाल सीता राय भारतीय जनता पार्टी की सक्रिय सदस्य हैं। मोहम्मदाबाद विधानसभा से 2007 में कांग्रेस की लालती देवी ने अपनी किस्मत आजमाने की कोशिश की, लेकिन उन्हें भी निराशा हाथ लगी।

जिला पंचायत, नगर पालिका व नगर पंचायत में महिलाओं ने प्रतिनिधित्व किया
हालांकि, नगरपालिका अध्यक्ष, जिला पंचायत अध्यक्ष और नगरपंचायत अध्यक्ष कई बार महिलाएं चुनी गईं, लेकिन जब बात विधायक और सांसद चुने जाने की आती है तो महिलाओं की मौजूदगी का खालीपन जिले को टीसता है।

सभी पार्टियों ने अपनी महिला विंग बनाकर महिलाओं को कार्यकर्ता तो बना दिया है, लेकिन अभी भी उनकी सक्रियता केवल वोट बटोरने तक रह गई है। प्रतिनिधित्व देने के नाम पर और टिकट देने के नाम पर अभी भी महिलाएं काफी पीछे हैं।

महिला कार्यकर्ताओं का कहना है कि अगर महिलाएं वोटर एक हो जाएं तो किसी की भी किस्मत चमका सकती हैं, लेकिन जनता किसी महिला प्रत्याशी पर भरोसा क्यों नहीं जता पाती है, यह विचारणीय विषय है।

विधानसभा चुनाव 2022 की तारीखों का ऐलान हो चुका है, अब देखना यह दिलचस्प होगा इस बार राजनीतिक दल मऊ के मैदान से कितनी महिलाओं को उम्मीदवार बनाते हैं और अगर महिलाएं उम्मीदवार बनती हैं तो क्या जनता उनको इस बार मौका देगी या इस बार भी मऊ की राजनीति महिलाओं के प्रतिनिधित्व से वंचित रहेगी?