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Mayawati Birthday: बहुजन से सर्वजन तक ऐसे पहुंची बसपा, मायावती ने पहली और आखिरी बार बनाई थी पूर्ण बहुमत की सरकार

मायावती का जन्म 15 जनवरी 1956 को एक दलित परिवार में हुआ था। मायावती का राजनीति में आना भी एक बड़ी दिलचस्प घटना है। वो बचपन से जिद्दी और आक्रामक रही थीं। जाति का दंश उन्हें बार-बार कचोटता था। इसलिए बहुत कम उम्र में अपने बगावती तेवरों के साथ 1977 में एक सार्वजनिक कार्यक्रम में वो राजनीति के धुरंधर नेता राजनारायण से भिड़ गईं। ये वही राजनारायण थे, जिन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को रायबरेली से चुनाव हराया था। यह घटना हर जगह चर्चा का विषय बनी। इसी घटना ने मान्यवर कांशीराम और मायावती की मुलाकात की पटकथा लिखी। जैसे ही कांशीराम को इसके बारे में पता चला, बिना किसी पूर्व सूचना के वो मायावती के घर पहुंच गए। ये वो वक्त था, जब मायावती सिविल सर्विसेज परीक्षा की तैयारी कर रही थीं। मायावती के परिवार ने जब अचानक कांशीराम को अपने घर देखा, तो उनकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा।
मायावती पहली दलित महिला मुख्यमंत्री हैं

साल 1993 में यूपी में बीजेपी को हराने के लिए दिल्ली के अशोका होटल में कांशीराम और मुलायम सिंह यादव के बीच गठबंधन हो गया। नारा दिया- ‘मिले मुलायम-कांशीराम, हवा में उड़ गए जय श्रीराम’। 6 दिसम्बर 1992 में बाबरी मस्जिद गिराए जाने और उससे पहले राम रथ यात्रा से बीजेपी के पक्ष में खासा माहौल दिख रहा था, लेकिन जब चुनाव नतीजे आए तो समाजवादी पार्टी को 109 और बहुजन समाज पार्टी को 67 सीटें मिलीं, हालांकि बीजेपी को दोनों दलों से एक ज़्यादा 177 सीटें मिली थीं। दोनों ने मिलकर यूपी में पहली बार सरकार बनाई, लेकिन यह प्रयोग ज़्यादा दिन नहीं चल पाया। दोनों दलों के बीच की खटपट का नतीजा हुआ –‘गेस्ट हाउस कांड’। तब वो 136 दिनों तक मुख्यमंत्री रहीं। मायावती पहली दलित महिला मुख्यमंत्री हैं। मायावती दूसरी बार 1997 में, तीसरी बार 2002 में और चौथी बार 2007 में मुख्यमंत्री बनीं।

मायावती की उपलब्धियां

परिवार का साथ छोड़ राजनीति में दलितों की आवाज बनी मायावती को जनता का साथ मिला। वह एक या दो नहीं बल्कि चार बार उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बनीं। मायावती सबसे पहले 1995 में यूपी की सीएम बनी। उसके बाद 1997 में एक बार फिर मायावती के हाथ में यूपी की सत्ता आई। साल 2002 में प्रदेश की मुखिया बनी मायावती ने लखनऊ को बदल डाला, जिसके बाद साल 2007 में जनता ने एक बार फिर मायावती को मुख्यमंत्री के तौर पर चुना।

मायावती ने ही अपनी सरकार में आंबेडकर नगर का गठन किया। मायावती ने बाद में पांच अन्य जिलों का गठन किया जिसमें गौतम बुद्ध नजर से गाजियाबाद को अलग किया। इलाहाबाद से कौशांबी और ज्योतिबा फूले नगर को मुरादाबाद से अलग कर दिया।

​मायावती की शिक्षा

मायावती का बचपन दिल्ली में ही गुजरा। मायावती ने दिल्ली विश्वविद्यालय के कालिंदी कॉलेज से 1975 में कला में स्नातक किया। उनके बाद 1976 मेरठ विश्वविद्यालय से स्नातक से बीएड किया। इतना ही नहीं 1983 में दिल्ली विश्वविद्यालय से एलएलबी की भी पढ़ाई पूरी की। मायावती ने बचपन से आईएएस बनने का सपना देखा था। ऐसे में पढ़ाई के बाद मायावती प्रशासनिक सेवा के लिए परीक्षा की तैयारी कर रही थीं। साथ ही दिल्ली के एक स्कूल में पढ़ाती भी थीं।

​1984 में जब बसपा की स्थापना की गई…

1984 में जब बसपा की स्थापना की गई तो उन्हें उत्तर प्रदेश की जिम्मेदारी दी गई. मायावती गांव-गांव घूमकर लोगों को बसपा ज्वाइन करवाने लगीं, कार्यालय में भी उनसे मिलने आने वालों का तांता लगा रहता था. धीरे-धीरे उनका कद बढ़ने लगा तो बाद में साल 1989 में वे पहली बार सांसद बनीं।

जब कांशीराम ने मायावती की नेतृत्व क्षमता को पहचाना

कांशीराम की पारखी नज़र ने मायावती की नेतृत्व क्षमता और उनमें छिपे भविष्य के नेता को पहचान लिया था। उन्होंने मायावती से प्रभावित होकर कहा, ‘तुम्हारे इरादे, हौसले और कुछ खासियत मेरी नज़र में आई हैं। मैं एक दिन तुम्हें इतनी बड़ी लीडर बना दूंगा कि एक कलेक्टर नहीं बल्कि तमाम कलेक्टर तुम्हारे सामने फाइल लिए खड़े होंगे। तभी तुम लोगों के लिए ठीक से काम कर पाओगी।’ कांशीराम के इन शब्दों ने मायावती पर गहरा प्रभाव डाला। यहीं से उनका राजनीतिक सफर शुरू हो गया। लेकिन ये सफर इतना आसान नहीं था, हर कदम पर उन्हे पुरुषवादी समाज के जहरीली दंश झेलने पड़े। सामाजिक दबाव के चलते मायावती के पिता ने उन्हें घर या राजनीति में से किसी एक को चुनने को कहा और उन्होंने राजनीति के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया।