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Editorial : फर्जी पर्यावरणविदों के मुंह पर भारत का तमाचा वन सर्वेक्षण रिपोर्ट

15-1-2022


वर्तमान परिदृश्य में विश्व जलवायु परिवर्तन की वैश्विक समस्या से जूझ रहा है। पश्चिम के देश जलवायु परिवर्तन के लिए विकासशील देशों को दोषी ठहराते हैं। वहीं, भारत ने पश्चिमी देशों को गलत ठहराते हुए यह साबित कर रह है कि  वह जलवायु परिवर्तन जैसे मुद्दों पर सक्रिय है और इसी क्रम में बीते गुरुवार को जारी इंडिया स्टेट ऑफ फ ॉरेस्ट रिपोर्ट 2021 के अनुसार, आंध्र प्रदेश में 647 वर्ग किमी के अधिकतम वन क्षेत्र में वृद्धि के साथ, पिछले दो वर्षों में भारत के वन और वृक्षों के आवरण में 2,261 वर्ग किमी की वृद्धि हुई है। केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने देश के वन संसाधनों के आकलन के लिए भारतीय वन सर्वेक्षण की द्विवार्षिक रिपोर्ट जारी की। 2019 की रिपोर्ट की तुलना में इस बार की बढ़ोतरी में कुल 1,540 वर्ग किमी की वन भूमि जबकि 721 वर्ग किमी वृक्ष आवरण भूमि शामिल है।
 वहीं, 2019 के अंतिम आकलन की तुलना में देश के कार्बन स्टॉक में 79.4 मिलियन टन की वृद्धि हुई है। कार्बन स्टॉक में वार्षिक वृद्धि 39.7 मिलियन टन की है। भारतीय वन सर्वेक्षण  ने बिड़ला इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी एंड साइंस पिलानी के गोवा कैंपस के सहयोग से ‘भारतीय वनों में जलवायु परिवर्तन हॉटस्पॉट की मैपिंगÓ पर आधारित एक अध्ययन भी किया है। भविष्य की तीन समयावधियों, यानी वर्ष 2030, 2050 और 2085 के लिए तापमान और वर्षा डेटा के कंप्यूटर मॉडल-आधारित प्रक्षेपण का उपयोग करते हुए, भारत में वन आवरण पर जलवायु हॉटस्पॉट का मानचित्रण करने के उद्देश्य से यह सहयोगी अध्ययन किया गया था।
 बता दें कि जलवायु परिवर्तन के फर्जी आंदोलनकारियों को अब मोदी सरकार से जूझना मुश्किल हो रहा है, खासकर तब जब पीएम खुद फ्रंट फुट पर उनका जवाब दे रहे हों। पिछले साल नवंबर में एक सार्वजनिक कार्यक्रम में बोलते हुए, पीएम मोदी ने ‘औपनिवेशिक मानसिकताÓ को दूर करने का आह्वान किया, जो कई विकृतियों को जन्म दे रही है। इसके अलावा भारत ने पेरिस समझौते के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए अपने प्रयासों को बढ़ाया है। पर्यावरण संरक्षण के साथ ही, उन्होंने फर्जीवादियों द्वारा शुरू की गई फर्जी जनहित याचिका की संस्कृति से प्रभावित होने के लिए न्यायपालिका पर कटाक्ष भी किया।
भारत कार्बन उत्सर्जन, वृक्षारोपण, वन आवरण जैसे हरेक क्षेत्रों में तथाकथित पर्यारणविदों से आगे है और यह रिपोर्ट ऐसे फर्जी पर्यावरणविदों के मुंह पर तमाचा है!