Lok Shakti

Nationalism Always Empower People

नवरात्रि पर चिंतन आलेख

विजय मिश्रा ‘अमित’  

पूरी दुनियां में भारत देश ही  एक अकेला ऐसा  देश है, जहां की एक वर्ष में दो बार नवरात्रि का पर्व धूमधाम से मनाया जाता है। क्वांर और चैत्र  के माह में नौ-नौ दिन तक मंदिरों में पूजा स्थल पर जोत जलाकर, जंवारा उगाकर मां दुर्गा के नव रूपों की पूजा आराधना की जाती है।छत्तीसगढ़ में भी इस पर्व को धूमधाम से मनाने की परंपरा है। छत्तीसगढ़ ऐसा राज्य है जहां की डोंगरी-पहाड़, खेत-खार, तालाब-नदियों के किनारे घने जंगलों के बीच मां दुर्गा विराजती हैं। दंतेश्ववरी, बम्बेलष्वरी, महामाया, सतबहनिया, चंडी माई, मरही माता, शीतला माता,बंजारी, चंद्रहासिनी ,बिलई माता अंगारमोती जैसे अनेक नामों से माताश्री के मंदिर छत्तीसगढ़ में हैं।  इसीलिए छत्तीसगढ़ समुचे देश में एक ऐसा अकेला राज्य जहां के निवासी  छत्तीसगढ़ को महतारी कहते हैं। लाल ध्वजा, लाल चुनरी, लाल चूड़ी, लाली लुगरा से माता रानी की प्रतिमा को सुसज्जित करनेऔर नींबू फल से निर्मित माला चढ़ाने के साथ ही साथ इस पर्व में  “कन्या भोजन” कराने का प्राचीन रिवाज है । दरअसल कुंवारी कन्याओं को  हमारे देश और प्रदेश में देवी के रूप में पूजने की प्रथा है। कहा जाता है कि ‘‘बेटी खाएगी उसे देवी पाएगी” ।इसी मान्यता के परिपालन में नवरात्रि पर्व पर नवदिन तक उपवास  करके देवी भक्त नव कन्याओं को विविध पकवान फल खिलाते हैं। कन्याओं का चरण धोकर,चरण छू कर उन्हें अपनी श्रद्धा भक्ति सामर्थ के मुताबिक भेंट देकर आशीष मांगते हैं।*बेटी -बेटा में भेदभाव*पर आजकल बदलते वक्त के साथ इस प्राचीन परंपरा में बड़ी विकृति दिखाई दे रही है। समाज में बेटी- बेटा के मध्य  बड़ा ही भेदभाव का बोल बाला दिखाई दे रहा है। बेटे होने की खुशी में जश्न मनाते  हैं।बड़ी बड़ी पार्टी किए जाते हैं ,किंतु जब बेटी जन्म लेती है तो ज्यादातर लोगों का मुंह ऐसे लटक जाता है, जैसे उन्हें सांप ने सुंघ लिया हो। ऐसी भयावह घटना भी सामने आ रही है कि आधुनिकता के साथ  चिकित्सा विज्ञान में हुई प्रगति का दुरुपयोग करते हुए अनेक चिकित्सक और दम्पत्ति मिलकर कोख में पल रही कन्या भ्रूण की निर्मम हत्या कर दे  रहे है।  ऐसी भयावह क्रूरतापूर्ण हरकत को करते समय इंसान भूल जाता है कि  घर मेंआती हुई लक्ष्मी सरस्वती और दुर्गा  की जघन्य हत्या करके महापाप का भागीदार अपने ही हाथों अपने सिर मोर ले रहा है। 
ऐसी अमानवीय कृत्य को करने वाला इंसान ईमानदारी से अपने हृदय में हाथ रखकर अपनी आत्मा से पूछे कि “कन्या भ्रूण हत्या’’ करने वाले  मनुष्य की पूजा का मान क्या मां दुर्गा स्वीकार करेगी? इस सवाल का सीधा-सीधा उत्तर है कभी नहीं। इसी तरह अनेक परिवारों में कम दहेज देने वाली दुल्हन  को प्रताड़ित किया जाता है। उसे जलाकर मार डालने जैसा अकल्पनीय कृत्य किया जाता है। अनेक गांव में नारी जाति को डायन टोनही कह कर मारा-पीटा जाता है । ऐसी नासमझी और मूर्खतापूर्ण कदम उठाने वालों को यह सोचना चाहिए  कि ऐसा करके वे लोग गांव घर की जीवित देवी का घोर अपमान कर रहे हैं। ऐसे ही कई अज्ञानी लोग अपना पाप धोने के लिए वर्ष में केवल दो बार नवरात्रि के पावन पर्व पर कन्या भोजन करवातें हैं। वे  भूल जाते हैं कि घर परिवार की जीती जागती देवी का तिरस्कार करने वाले दुर्जनों को मां दुर्गा कभी भी क्षमा नहीं करेगी। 
हमारे समाज में कई ऐसी घटनाएं भी उजागर हुई हैं जब  बेटों ने माता पिता   की जमीन जायदाद को बांट लियाऔर फिर मुंह फेर लिया। इसके विपरीत  फुटी कौड़ी की आस किए बिना भी बेटियों ने अपने  माता-पिता के दुख दर्द को अपना दुख दर्द समझा।हंसी खुशी से उनकी पीड़ा को बांटते  हुए उनकी ज़िन्दग़ी को संवारने में अपनी खुशी देखी।कवि श्री ने बेटियों की ऐसी महिमा को ब्यक्त करतेलिखा है कि- फूल सी नाजुक होती है बेटियाॅ,स्पर्श हो खुरदुरा तो रोती है बेटियांरौशन करेगा बेटा तो एक ही कुल को, पर दो दो कुल की लाज को सवांरती है बेटियाॅ। *मायके ससूराल में पराई बेटी*
वो बेटी जो जन्म के बीस पच्चीस बरस मायके में बिताती है। ए सुनते सुनते कि बेटियां तो पराया धन होती हैं, दुर्भाग्य है कि विवाह उपरांत उन्ही बेटियों को ससूराल में भी जीवन भर पराया कहा जाता है।स्मरण कीजिए एक पौधे को मिट्टी से गमले में या गमले से मिट्टी में जब रोपा जाता है तो वह स्थान परिवर्तन की पीड़ा में मुरझा जाता है। वहीं बीस पच्चीस वर्षों तक मायके में पली बढ़ी बेटियां अपनी मिट्टी,अपना घर- परिवार,गांव- शहर अपनी सखी सहेलियों को छोड़कर समस्त पुराने रिश्तों के विछोह की वेदना को भूलाकर  सदा सदा के लिए ससुराल में जा बसती है। वहां भी अगर बेटी को माता पिता की थोड़ी भी अकुशलता का समाचार मिलता है तो वह मायके जाने को मछली की भांति तड़फ उठती है।हमारे वेदपुराण इतिहास,और चिंतक चीख चीख कर बता रहे हैं कि बेटों की तूलना में बेटियां कम ज्ञानी  नहीं होती।  हमारे हरेक पर्व हमारी परम्पराएं   बेटियों पर केंद्रित हैं। बेटियों की घटती संख्या के कारण समाज में अनेक रिश्ते-नाते,  त्योहार समाप्त प्राय हो चलें है।इस विषय पर गंभीर चिंतन मनन करने नवरात्रि पर्व फिर आया है।इस पर्व पर देवी की पूजा में लीन देवी भक्तों से यही कहना है कि रोते बिलखते परिवार को बिटिया हंसा देती है। इसीलिए वे देवी की वरदान होती हैं अतःबेटियों का मान देवियों के मानिंद ही   रखें। इसी में जगत की भलाई है। ऐसे ही भावनाओं की अभिव्यक्ति कविश्री ने दिल को छू लेने वाली पंक्तियों में ब्यक्त किया है —- हल्दी-कुमकुम,मेंहदी-सिंदूर का अवतार न होता न होती बहिन -बेटियां तो  रंक्षाबंधन-भाईदूज तीज का त्यौहार न होता।