Lok Shakti

Nationalism Always Empower People

अहिंसा की ताकत को पहचानें अहिंसा-यात्रा से

-ललित गर्ग-

अहिंसा ताकतवरों का हथियार है। दमनकारी के खिलाफ वही सिर उठाकर खड़ा हो सकता है, जिसे कोई डर न हो, जो अहिंसक हो एवं मूल्यों के लिये प्रतिबद्ध हो। इस कसौटी पर कसेंगे, तो आपको साफ-साफ समझ में आ जाएगा कि मौजूदा समय में कौन निडर है और कौन भयभीत। कौन कितना नैतिक है और कौन कितना भ्रष्ट। पिछले तीन सौ दिनों में भारतीय जनमानस ने तीन कृषि कानूनों के खिलाफ चल रहे किसान आन्दोलन की हिंसक, अराजक, अनुशासनहीन एवं अलोकतांत्रिक गतिविधियों के बावजदू अभूतपूर्व संयम और आत्मबल का परिचय दिया है। हाल की लखीमपुर खीरी में हुई हिंसा हो या बार-बार भारत बंद जनता के लिये परेशानियों का सबब बना। हाइवे रोके गये, रेल की पटरियों पर प्रदर्शनकारियों ने रेल यातायात को अवरूद्ध किया। जनजीवन अस्तव्यस्त हुआ, परेशानियों के बीच आम आदमी का जीवन थमा ही नहीं, कड़वे अनुभवों का अहसास बना। हिंसा का ताण्डव भी बार-बार देखने को मिला। जबकि अहिंसा सबसे ताकतवर हथियार है, बशर्ते कि इसमें पूरी ईमानदारी बरती जाए। लेकिन देश में किसान आन्दोलन हो या ऐसे ही अन्य राजनैतिक आन्दोलन, उनमें हिंसा का होना गहन चिन्ता का कारण बना है। हिंसा और आतंकवाद की स्थितियों ने जीवन में अस्थिरता एवं भय व्याप्त कर रखा है। अहिंसा की इस पवित्र भारत भूमि में हिंसा का तांडव सोचनीय है। महावीर, बुद्ध, गांधी एवं आचार्य तुलसी के देश में हिंसा को अपने स्वार्थपूर्ति का हथियार बनाना गंभीर चिंता का विषय है। इस जटिल माहौल में आचार्य श्री महाश्रमण द्वारा अहिंसा यात्रा के विशेष उपक्रम के माध्यम से अहिंसक जीवनशैली और उसके प्रशिक्षण का उपक्रम और विभिन्न धर्म, जाति, वर्ग, संप्रदाय के लोगों के बीच संपर्क अभियान चलाकर उन्हें अहिंसक बनने को प्रेरित किया जाना न केवल प्रासंगिक है, बल्कि राष्ट्रीय जीवन की आवश्यकता है।
आचार्य श्री महाश्रमण ने दिनांक 9 मार्च 2014 को राजधानी दिल्ली के लाल किला प्राचीर से अहिंसा यात्रा का शुभारंभ किया था। उन्होंने उन्नीस राज्यों एवं तीन पड़ोसी देशों की करीब सत्तर हजार किलोमीटर की पदयात्रा करते हुए अहिंसा और शांति का पैगाम फैलाया। नेपाल में भूकम्प, कोरोना की विषम परिस्थितियों में इस यात्रा का नक्सलवादी एवं माओवादी क्षेत्रों में पहुंचना आचार्य महाश्रमण के दृढ़ संकल्प, मजबूत मनोबल एवं आत्मबल का परिचायक है। इस यात्रा का समापन समारोह राजधानी दिल्ली में 27 मार्च 2022 को होना एक सुखद संयोग है। आचार्य महाश्रमण का देश के सुदूर क्षेत्रों-नेपाल, भूटान एवं श्रीलंका जैसे पडौसी राष्ट्रों सहित आसाम, बंगाल, बिहार, मध्यप्रदेश, उड़ीसा, कर्नाटक, तमिलनाडू, महाराष्ट्र, राजस्थान, छत्तीसगढ़ आदि में अहिंसा यात्रा करना और उसमें अहिंसा पर विशेष जोर दिया जाना अहिंसा की स्थापना के लिये सार्थक सिद्ध हुआ है। क्योंकि आज देश एवं दुनिया हिंसा के महाप्रलय से भयभीत और आतंकित है। जातीय उन्माद, सांप्रदायिक विद्वेष और जीवन की प्राथमिक आवश्यकताओं का अभाव- ऐसे कारण हैं जो हिंसा को बढ़ावा दे रहे हैं और इन्हीं कारणों को नियंत्रित करने के लिए आचार्य महाश्रमण प्रयत्नशील हैं। इन विविध प्रयत्नों में उनका एक अभिनव उपक्रम है-‘अहिंसा यात्रा’। आज अहिंसा यात्रा एकमात्र आंदोलन है जो समूची मानव जाति के हित का चिंतन कर रहा है। अहिंसा की योजना को क्रियान्वित करने के लिए ही उन्होंने पदयात्रा के सशक्त माध्यम को चुना है। ‘चरैवेति-चरैवेति चरन् वै मधु विंदति’ उनके जीवन का विशेष सूत्र बन गया है।
आचार्य महाश्रमण एक ऐसी आलोकधर्मी परंपरा का विस्तार है, जिस परंपरा को महावीर, बुद्ध, गांधी, आचार्य भिक्षु, आचार्य तुलसी और आचार्य महाप्रज्ञ ने अतीत में आलोकित किया है। अतीत की यह आलोकधर्मी परंपरा धुंधली होने लगी, इस धुंधली होती परंपरा को आचार्य महाश्रमण एक नई दृष्टि प्रदान कर रहे हैं। यह नई दृष्टि एक नए मनुष्य का, एक नए जगत का, एक नए युग का सूत्रपात कही जा सकती है। वे आध्यात्मिक इन्द्रधनुष की एक अनूठी एवं सतरंगी तस्वीर हैं। उन्हें हम ऐसे बरगद के रूप में देखते हैं जो सम्पूर्ण मानवता को शीतलता एवं मानवीयता का अहसास कराता है। इस तरह अपनी छवि के सूत्रपात का आधार आचार्य महाश्रमण ने जहाँ अतीत की यादों को बनाया, वहीं उनका वर्तमान का पुरुषार्थ और भविष्य के सपने भी इसमें योगभूत बन रहे हैं। जीवन के छोटे-छोटे मसलों पर जब वे अपनी पारदर्शी नजर की रोशनी डालते हैं तो यूं लगता है जैसे कुहासे से भरी हुई राह पर सूरज की किरणें फैल गई। मन की बदलियां दूर हो जाती हैं और निरभ्र आकाश उदित हो गया है। आपने कभी देखा होगा ऊपर से किसी वादी को। बरसात के दिनों में अकसर वादियां ऐसी दिखाई देती हैं जैसे बादलों से भरा कोई कटोरा हो, और कुछ भी नजर नहीं आता। फिर अचानक कोई बयार चलती है और सारे बादलों को बहा ले जाती है और दृष्टिगत होने लगता है वृक्षों का चमकता हरा रंग। बस ऐसी ही बयार जैसे हैं आचार्य महाश्रमण के शब्द एवं कर्म। बादल छंटते हैं और जो जैसा है, वैसा ही दिखाई देने लगता है।
स्वल्प आचार्य शासना में आचार्य महाश्रमण ने मानव चेतना के विकास के हर पहलू को उजागर किया। श्रीकृष्ण, श्रीराम, महावीर, बुद्ध, जीसस के साथ ही साथ भारतीय अध्यात्म आकाश के अनेक संतों-आदि शंकराचार्य, कबीर, नानक, रैदास, मीरा आदि की परंपरा से ऐसे जीवन मूल्यों को चुन-चुनकर युग की त्रासदी एवं उसकी चुनौतियों को समाहित करने का अनूठा कार्य उन्होंने किया। जीवन का ऐसा कोई भी आयाम नहीं है जो उनके प्रवचनों-विचारों से अस्पर्शित रहा हो। योग, तंत्र, मंत्र, यंत्र, साधना, ध्यान आदि के गूढ़ रहस्यों पर उन्होंने सविस्तार प्रकाश डाला है। साथ ही राजनीति, कला, विज्ञान, मनोविज्ञान, दर्शन, शिक्षा, परिवार, समाज, गरीबी, जनसंख्या विस्फोट, पर्यावरण, हिंसा, जातीयता, भ्रष्टाचार, राजनीतिक अपराधीकरण, भ्रूणहत्या और महंगाई के विश्व संकट जैसे अनेक विषयों पर भी अपनी क्रांतिकारी जीवन-दृष्टि प्रदत्त की है। जब उनकी उत्तराध्ययन और श्रीमद् भगवद गीता पर आधारित प्रवचन शृंखला सामने आई, उसने आध्यात्मिक जगत में एक अभिनव क्रांति का सूत्रपात किया है। एक जैनाचार्य द्वारा उत्तराध्ययन की भंाति सनातन परम्परा के श्रद्धास्पद ग्रंथ गीता की भी अधिकार के साथ सटीक व्याख्या करना न केवल आश्चर्यजनक है बल्कि प्रेरक भी है। इसीलिये तो आचार्य महाश्रमण मानवता के मसीहा के रूप में जन-जन के बीच लोकप्रिय एवं आदरास्पद है। वे एक ऐसे संत हैं, जिनके लिये पंथ और ग्रंथ का भेद बाधक नहीं बनता। आपके कार्यक्रम, विचार एवं प्रवचन सर्वजनहिताय होते हैं। हर जाति, वर्ग, क्षेत्र  और सम्प्रदाय की जनता आपके जीवन-दर्शन एवं व्यक्तित्व से लाभान्वित होती रही है।
अपनी आवाज की डोर से कोई लाखों-करोड़ों में रूहानी इश्क का जुनून भर दे और यह अहसास दिलवा दे कि यह कायनात उतनी ही नहीं है जितनी हमने देखी है-सितारों से आगे जहां और भी हैं-आज के दौर में तो यह आवाज आचार्य महाश्रमण  की ही है। महाश्रमणजी ने बहुत बोला है बोल रहे हैं और पूरी दुनिया ने सुना है और सुन रही है- किसी ने दिल थामकर तो किसी ने आस्थाशील होकर। लेकिन उनकी आवाज सब जगह गूंज रही हंै। पर जितना भी उन्होंने बोला है, मैं समझता हूं कि उसका निचोड़ बस इतना है कि आदमी अपनी असलियत के रूबरू हो जाए। शाम को जब आसमान पर बादल कई-कई रंगों से खिल जाते हैं तो वहां मंै भावों का नृत्य होते देखता हूं, समंदर की लहरों में, वृक्षों में, हवाओं में-भाव, भाव और भाव। आचार्य महाश्रमण को सुनना भी मेरे जैसे असंख्य लोगों के लिए ऐसा ही है जैसे कि हृदय को कई-कई भंगिमाओं से गुजरने का अवसर देना। यह आवाज हमारे वक्त की जरूरत है, आचार्य महाश्रमण हमारे वक्त की जरूरत है। आचार्य महाश्रमण के निर्माण की बुनियाद भाग्य भरोसे नहीं, बल्कि आत्मविश्वास, पुरुषार्थी प्रयत्न, समर्पण और तेजस्वी संकल्प से बनी है। हम समाज एवं राष्ट्र के सपनों को सच बनाने में सचेतन बनें, यही आचार्य महाश्रमण की प्रेरणा है और इसी प्रेरणा को जीवन-ध्येय बनाना हमारे लिए शुभ एवं श्रेयस्कर है। इसी से किसान आन्दोलन जैसी समस्याओं का समाधान निकल सकता है।