अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष नरेंद्र गिरि का काशी से गहरा लगाव था। अन्नपूर्णा मंदिर और धर्मसंघ से वह व्यक्तिगत स्तर से जुड़े थे। काशी में दलित वर्ग का महामंडलेश्वर का मामला हो या गंगा में मूर्ति विसर्जन का नरेंद्र गिरि ने बेबाकी से अपनी बात रखी और संत समाज ने उसको स्वीकार भी किया।
गंगा में मूर्ति विसर्जन के साधु संतों द्वारा 2015 में निकाली गई प्रतिकार यात्रा का उन्होंने विरोध किया था और खुले मंच से इसको गलत बताया था। प्रतिकार यात्रा के बाद बनारस आए नरेंद्र गिरि ने इसको गलत बताते हुए यात्रा पर नाराजगी जताई थी। कहा था कि जब कुंभ के दौरान मूर्ति विसर्जन पर सहमति बन गई थी तो फिर विरोध किस बात का।
गंगा में अस्थि विसर्जन की परंपरा पुरानी है, लेकिन मूर्ति विसर्जन की परंपरा नई है। इसको बदला जा सकता है। उन्होंने साधु संतों से गंगा निर्मलीकरण में सहयोग करने की अपील की थी। उन्होंने कुंडों में विसर्जन करने की अपील की थी।
संस्कृत व धर्म विद्या संकाय में डॉ. फिरोज की नियुक्ति का समर्थन
काशी हिंदू विश्वविद्यालय के संस्कृत व धर्म विद्या संकाय में डॉ. फिरोज की नियुक्ति का भी नरेंद्र गिरि ने समर्थन किया था। सोमवार को उनके ब्रह्मलीन होने के बाद से ही संत समाज में शोक की लहर है।
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