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लॉकडाउन में शहर से लौटे युवा पंचायत चुनाव के अखाड़े में ठोक रहे ताल

पंचायत चुनाव ग्रामीण युवाओं के लिए ऐसे समय में रोजगार के अवसर लेकर आए हैं जब लॉकडाउन के बाद उनकी रोजी-रोटी पर संकट है। ग्रामीण युवा करिअर के लिए बेहतर अवसर मानते हुए चुनावों में बढ़-चढ़ कर हिस्सा कर रहे हैं। पंचायतों के बढ़े बजट और प्रतिष्ठा के साथ ही आगे की सुरक्षित राह को देखकर युवा प्रत्याशी अपनी किस्मत आजमाने से पीछे नहीं रहना चाहते।पंचायत चुनावों पर  ग्राउंड रिपोर्ट में गांव की राजनीति में युवा चेहरे बढ़-चढ़ कर दिख रहे हैं। लॉकडाउन में गांव आए ऐसे युवा भी चुनाव में ताल ठोक रहे हैं जो शहरों में वापस नहीं लौट पाए हैं। इनमें से कई इसे मंदी के इस दौर में रोजगार और प्रतिष्ठा का बेहतर अवसर मानते हैं। यहां तक कई उच्च शिक्षा प्राप्त युवा भी पंचायत चुनाव को अवसर मान रहे हैं।बस्ती जिले की नेवादा ग्राम पंचायत में प्रधान पद पर चुनाव लड़ने वाले ज्यादातर युवा हैं। निवर्तमान प्रधान जय प्रकाश शुक्ल ने अपने बेटे विवेक शुक्ला को मैदान में उतारा तो विरोधियों ने भी अपने बेटों को आगे कर दिया। गांव के नुक्कड़ पर बेटे की तस्वीर से बना गेट दिखाते हुए जय प्रकाश कहते हैं, इंजीनियरिंग में डिप्लोमा करने के बाद बेटे ने अमृतसर में नौकरी शुरू कर दी, लेकिन ग्राम प्रधान रहीं मेरी मां की मृत्यु के बाद उसे प्रधान का उम्मीदवार चुना गया।रायबरेली जिले के बछरावां ब्लॉक के ठकुराइन खेड़ा गांव में रहने वाली स्नातक तक पढीं ऋचा पाल ने जिला पंचायत सदस्य के लिए पर्चा दाखिल कर दिया है। ऋचा कहती हैं, नौकरी करके हम अपना ही भविष्य बना सकते थे, गांव की राजनीति में हम समाज का भला कर पाएंगे।आबादी 46 फीसदी, चुने गए सिर्फ 13 फीसदी ही युवाराज्य निर्वाचन आयोग के अनुसार कुल 12.39 ग्रामीण मतदाताओं में करीब 46 फीसदी 18-35 साल के हैं। जबकि, वर्ष 2015 के पंचायत चुनाव में 21 से 35 आयु वर्ग के कुल 20,707 प्रधान ही चुने गए थे। यह संख्या कुल प्रधानों की लगभग 13 फीसदी थी। वर्ष 2015 में 55 फीसदी जिला पंचायत अध्यक्ष 21-35 वर्ष के थे। वे भले ही राजनीतिक परिवार से जुड़े हुए हों, लेकिन राजनीति का ककहरा गांव से पढ़ना शुरू किया।निचले तबके के युवा भी जान रहे हैं कि समाज में ऊपर आने का सरल रास्ता गांव की राजनीति में ऊपर आना। सोनभद्र के दुद्धी से जिला पंचायत सदस्य का चुनाव लड़ रहे 28 वर्ष के भीम सिंह इन चुनावों को युवाओं के लिए एक सुनहरा मौका मानते हैं। भीम बताते हैं कि इससे अच्छा क्या है कि गांव समाज का विकास हो, हमें भी रोजगार मिल जाए। इस बार सोनभद्र से ज्यादातर युवा प्रत्याशी ही हैं, पहले युवाओं को कोई तवज्जो नहीं देता था। अगर जीत गए तो रोजगार का सुनहरा मौका भी है।
ललितपुर जिले के ही टोरिया गांव के अंशुल पुरोहित 33 साल के हैं, प्रधान पद के दावेदार हैं। वह युवा सोच को ग्रामीण विकास के लिए बेहतर मानते हैं, खुद के लिए बेहतर भविष्य भी। अंशुल कहते हैं, ये राजनीतिक जीवन की शुरुआत हो सकती है। मुंबई की कंपनी में काम करने वाले रमेश यादव (45 वर्ष) लॉकडाउन में गांव आए लेकिन फिर वापस नहीं जा पाए। अब वह सिद्धार्थनगर की सेवरा भरौली सीट से क्षेत्र पंचायत सदस्य (बीडीसी) का चुनाव लड़ रहे हैं। वहीं, सुल्तानपुर के मझवारा गांव निवासी बृजेन्द्र प्रताप सिंह ने पुणे से एलएलबी करने के बाद अब अपने गाँव में प्रधानी का चुनाव लड़ रहे हैं।बीटेक, एमटेक के बाद गांव की राजनीतिकई युवा तो ऐसे हैं जो इंजीनियरिंग की पढ़ाई करके बड़ी कंपनियों में नौकरी भी कर रहे हैं, लेकिन उन्हें भी गांव की राजनीति भा रही है। अलीगढ़ की इगलास तहसील के रामपुर गांव में रहने वाले मदन (30 वर्ष) बीटेक और एमटेक करने के बाद एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में मैनेजर हैं। इस बार वे जिला पंचायत का चुनाव लड़ रहे हैं। मदन कहते हैं, गांव से जो रास्ते शहर जाते हैं, वहीं रास्ते शहर से गांव भी आते हैं। मैं किसान का बेटा हूं। पुरानी तौर-तरीकों से लोग ऊब चुके हैं। गांवों की राजनीति में युवा अच्छा काम कर रहे हैं।